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________________ खतरा नहीं था, लेकिन अब इतने लोगों की भीड़ में सोना, क्या पता वह उनमें कहा गुम हो जाए। जब जाग रहे हों तब तो ठीक है, तब तो स्वयं का स्मरण रखा जा सकता है; लेकिन नींद आने के बाद तो कोई भी अपने को खो दे सकता है, भूल सकता है। सुबह होने तक कौन जाने क्या से क्या हो जाए, चीजें कितनी बदल जाएं? कौन जाने उस बड़ी भीड़ में गम ही हो जाए? उसे परेशान और अपने बिस्तर में गुमसुम बैठा देखकर, किसी ने उससे पूछा, क्या बात है? तुम सोते क्यों नहीं हो? उस मूढ़ ने अपनी सारी समस्या उस आदमी को बतायी। उसकी समस्या सुनकर उसे जोर से हंसी आ गई। वह उस मूढ़ से बोला, इस समस्या को सुलझाना तो बहुत आसान है। जरा उस ओर तो देखो, कोई बच्चा अपना गुब्बारा वहां छोड़ गया है। उसे लाकर तुम अपने पैर से बांध लो, ताकि सुबह होने पर गुब्बारे को देखकर तुम जान लोगे कि तुम्ही हो। वह मूढ़ बोला, बात तो ठीक है। और उसे 'नींद भी आ रही थी, क्योंकि वह बहुत थका हुआ भी था। तो उसने गुब्बारे में धागा बांधकर उसे अपने पैर से बांध लिया और सो गया। जब वह मूढ़ सो गया तो उस आदमी को मजाक सूझा। रात को जब वह मूढ़ खर्राटे भरने लगा, उसने गुब्बारा उसके पैर से खोलकर अपने पैर में बाध लिया। सुबह जब वह मूढ़ उठा और उसने अपने चारों और देखा और उसे गुब्बारा नजर नहीं आया, तो वह जोर-जोर से रोने-चिल्लाने लगा। उसका रोना-चिल्लाना सुनकर बहुत से लोग उसके आसपास इकट्ठे हो गए और उससे पूछने लगे, 'क्या बात है, क्या हुआ?' वह मूढ़ कहने लगा, 'मैं यह तो जानता ही हूं कि वह आदमी तो मैं ही हूं लेकिन फिर मैं कौन हूं? और यही है पूरी की पूरी समस्या। अहंकार इसीलिए है, क्योंकि तुम जानते नहीं कि तुम कौन हो। तो अहंकार को अपनी पहचान बनाए रखने के लिए नाम, पता, पद-प्रतिष्ठा, यश–यह सारी बातें, अहंकार को बनाए रखने में मदद करती हैं। यह सभी पहचान गुब्बारों की भाति तुम्हारे साथ बंधी रहती हैं। अगर अचानक तुम किसी दिन दर्पण में देखो और दर्पण में वह चेहरा न पाओ तुम जिसे आज तक देखते आए हो, तो तुम पागल हो उठोगे-कि वह पहचान का बंधा हुआ गुब्बारा कहा चला गया। हमारा चेहरा तो निरंतर परिवर्तित होता रहा है, लेकिन परिवर्तन इतनी धीमी गति से होता है कि उसे पहचानना मुश्किल होता है। जरा घर में पड़ी हुई बचपन की तस्वीरों के एलबम को फिर से देखना। चूँकि तुम जानते हो कि वह तुम्हारा ही एलबम है, इसलिए तुम्हें शायद ज्यादा फर्क मालूम भी नहीं पड़े, लेकिन थोड़ा उन तस्वीरों को ध्यानपूर्वक देखना कि तुम में कितना कुछ बदल चुका है। वही चेहरा अब नहीं है, क्योंकि कहीं भीतर गहरे में तुम में कोई चीज स्थायी रूप से वही रहती है। और हो सकता है तुम्हारा नाम बदल
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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