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________________ तुम कौन से केंद्र पर हो यह जानने का प्रयत्न करो तुम सूर्य –मन हो -तब गणित और तर्क तुम्हारे जीवन –शैली होगी, अगर चंद्र-मन हो -तो काव्य, कल्पनाशीलता तुम्हारी जीवन-शैली होगी। तो तुम क्या हो और तुम्हारी क्या स्थिति है, पहले तो इसे जानना जरूरी है। और ध्यान रहे, दोनों मन आधे – आधे होते हैं। तुम्हें दोनों के ही पार जाना है। अगर तुम सूर्य -मन हो तो पहले चंद्र-मन तक आना होगा, फिर उसके भी आगे जाना है। अगर तुम गृहस्थ हो, तो पहले जिप्सी हो जाओ। यही है संन्यास। मैं तुम्हें जिप्सी बना रहा हूं, घुमक्कड़ बना रहा हूं। अगर तुम बहुत ज्यादा तार्किक हो, तो मैं तुमसे कहता हूं श्रद्धा करो, समर्पण करो, त्याग करो, सर्व –स्वीकार भाव से झुको। अगर तुम बहुत ज्यादा तार्किक हो, तो मैं तुम से कहूंगा कि यहां तर्क की कोई जरूरत नहीं है। बस, मेरी ओर देखो और प्रेम में डूबो। अगर ऐसा कर सको तो अच्छा है। क्योंकि यह एक प्रेम का नाता है। अगर तुम श्रद्धा में जी सकते हो, तो तुम्हारी ऊर्जा सूर्य से चंद्र की ओर सरक जाएगी। जब तुम्हारी ऊर्जा सूर्य से चंद्र की ओर सरक जाती है, तो एक नयी ही संभावना का द्वार खुलता है. तुम फिर चंद्र के भी पार जा सकते हो, तब तुम साक्षी हो जाते हो। और वही है उददेश्य, वही है मंजिल। आज इतना ही। प्रवचन 74 - अहंकार अटकाने को खूटा नहीं प्रश्न-सारः 1-क्या संबुद्ध होना और साथ ही संबोधि के प्रति चैतन्य होना संभव है? क्या संबुद्ध का विचार स्वय में अहंकार उत्पन्न नहीं कर देता है? 2-मैं अक्सर दो मन में रहता हं-सूर्य और चंद्र मन में। कृपया कुछ कहें।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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