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________________ होना चाहते हो। अगर ऐसा संभव होता, तो संन्यास की कोई जरूरत ही नहीं थी, तब ध्यान की कोई आवश्यकता ही न थी। तुम्हें दोनों चीजें एक साथ नहीं मिल सकतीं। एक बार तुम ध्यान करना शुरू करते हो, तो राजनीति बिदा होने लगती है। राजनीति के साथ ही साथ उसके जो प्रभाव होते हैं, वह भी बिदा होने लगते हैं। तनाव, चिंता, उद्वेग, संताप, हिंसा, लोभ –वे सभी बिदा होने लगते हैं। राजनीतिक मन की ही उप -उत्पत्ति है, मन की ही बाई-प्रॉडक्ट है। तुम्हें निर्णय लेना होगा. या तो तुम राजनीतिक हो सकते हो, या तुम ध्यानी हो सकते हो। तुम दोनों एक साथ नहीं हो सकते। क्योंकि जब ध्यान होता है; तो अंधकार तिरोहित हो जाता है। तुम्हारे संसार में ध्यान का ही अभाव है। और जब ध्यान घटित होता है, तो यह संसार अंधकार की भांति तिरोहित हो जाता है। इसीलिए पतंजलि, शंकर और सभी लोग जिन्होंने भी जाना है, कहते आए हैं कि संसार माया है, सत्य नहीं। अंधकार की तरह उसका कोई अस्तित्व नहीं है। जब होता है, तब वास्तविक लगता है। लेकिन जब भीतर ध्यान के प्रकाश का आविर्भाव हो जाता है, तो अचानक पता चलता है कि अंधकार सत्य नहीं था, उसकी कोई सता न थी। थोड़ा कभी अंधकार पर गौर करना कि उसकी कैसी वास्तविकता है, वह कैसे वास्तविक मालूम पड़ता है। वह सभी ओर से तुम्हें घेरे रहता है। केवल इतना ही नहीं, तुम उससे भयभीत भी रहते हो। अवास्तविकता तुम्हारे भीतर भय निर्मित कर देती है। वह तुम्हें मार भी डाल सकती है, और जबकि ही नहीं। प्रकाश लाना। और दवार पर किसी को खड़ा कर देना कि वह अंधकार को दवार से बाहर जाते हए देख पाता है या नहीं। कोई कभी अंधकार को बाहर जाते नहीं देख पाया है, और न ही कभी कोई अंधकार को भीतर आते हुए देख पाया है। अंधकार भासता है कि है और होता नहीं है। इच्छाओं, आकांक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं के तथाकथित राजनीति के संसार का होना केवल लगता है कि है और वह होता नहीं है। जब तुम ध्यान में गहरे जाते हो, तो तुम अपनी उन सभी नासमझियों पर, और उन सभी दुख -स्वप्नों पर हंसते हो, जो कि प्रकाश के आते ही तिरोहित हो जाती हैं। तो फिर कृपा करके ऐसी असंभव बात के लिए प्रयास मत करना। अगर ऐसा प्रयास तुमने जारी रखा, तो तुम द्वंद्व में पड़ोगे, और तुम्हारा व्यक्तित्व एक खंडित व्यक्तित्व हो जाएगा। 'क्या मैं राजनीति और ध्यान दोनों को चुन सकता हूं? क्या मैं एक साथ स्वयं को और संसार को बदलने की बात चुन सकता हूं?' ऐसा संभव नहीं।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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