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________________ हआ हो। ऐसा होगा भी नहीं, क्योंकि संबोधि के लिए ऊर्जा को सूर्य से चंद्रमा की ओर बढ़ना होता है। क्योंकि संबोधि की अवस्था में सभी प्रकार की उत्तेजना शांत हो जाती है, सारे तनाव शिथिल हो जाते हैं। संबोधि परम विश्रांति है –परम विश्रांति की अवस्था है। जिसमें जरा भी कहीं कोई हलन -चलन, कंपन नहीं रह जाता। थोड़ा इस प्रयोग को करके देखना। जब कभी तुम्हारे पास समय हो, तो बस अपनी आंखें बंद कर लेना. प्रारंभ में अनुभव करने के लिए नाभि के दो इंच नीचे की जगह अपनी अंगुलियों से दबा देना, और उसके प्रति सजग हो जाना, जागरूक हो जाना। तुम्हारी श्वास वहीं तक जाएगी। जब तुम स्वाभाविक रूप से श्वास लेते हो, तो पेट ऊपर होता है, फिर नीचे होता है, फिर पेट ऊपर होता है, नीचे होता है, इस भाति ऊपर -नीचे होता रहता है। धीरे – धीरे तुम अनुभव करने लगोगे कि तुम्हारी श्वास ठीक हारा को छ रही है। श्वास हारा को छएगी ही। इसीलिए तो जब श्वास रुक जाती है तो व्यक्ति मर जाता है, क्योंकि तब श्वास हारा को नहीं छ रही होती है। श्वास का संबंध हारा से टूट चुका होता है, जब श्वास का संबंध हारा से टूट जाता है तो व्यक्ति मर जाता है। मृत्यु हारा -केंद्र से ही होती है। जब पुरुष युवा होता है तो वह सूर्य के समान ऊर्जा से भरा होता है, जब पुरुष वृद्धावस्था की ओर बढ़ने लगता है तो वह चंद्रमा के समान शीतल और ठंडा होने लगता है। जब स्त्री युवा होती है तो वह चंद्र के समान शीतल और ठंडी होती है, जब वह वृद्ध होने लगती है तो वह सूर्य के समान तेज हो जाती है। इसीलिए तो बहुत सी स्त्रियां जब वे वृद्ध होने लगती हैं तो उनकी मुळे निकलने लगती हैं, वे सूर्यगत हो जाती हैं। वर्तुल घूम जाता है, वर्तुल पूरा हो जाता है। बहुत से पुरुष जब वे वृद्धावस्था की ओर बढ़ने लगते हैं तो वे झगड़ालू? चिड़चिड़े, क्रोधी हो जाते हैं, वे क्रोध में ही जीने लगते हैं –हर समय, हर बात के लिए वे क्रोधित रहते हैं। वे चंद्र -केंद्र की ओर बढ़ रहे होते हैं। उन्होंने अपनी ऊर्जा को रूपांतरित नहीं किया है, वे केवल एक सांयोगिक जीवन जीते हैं। स्त्रियां वदधावस्था में अधिक आक्रामक हो जाती हैं, क्योंकि उनका चंद्र-केंद्र खाली हो जाता है। उन्होंने उस केंद्र का उपयोग कर लिया होता है, उनका सूर्य -केंद्र अभी भी ताजा और नवीन होता है, उसका उपयोग अभी किया जा सकता है। पुरुष अपनी वृद्धावस्था में स्त्रियों जैसा व्यवहार करने लगता है, और वह ऐसे काम करने लगता है जिनकी उनसे कभी अपेक्षा ही नहीं की जा सकती थी। उदाहरण के लिए प्रत्येक बात में स्त्री और पुरुष में भिन्नता होती है। अगर पुरुष क्रोधित होता है, तो वह सामने वाले को चोट पहुंचाना चाहता है; अगर स्त्री क्रोधित होती है तो वह बड़बड़ाने लगती है और सामने वाले को सताने लगती है और लेकिन फिर भी वह किसी को चोट नहीं पहुंचाती है। वह आक्रामक नहीं होती है, फिर भी वह निष्किय ही रहती है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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