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________________ तो जो अहंकारी व्यक्ति अपने अहंकार को हराने का प्रयास करता है, वह विनम्र हो जाएगा, लेकिन अब उसकी विनम्रता में भी अहंकार होगा और तुम विनम्र व्यक्तियों से ज्यादा बड़े अहंकारी नहीं खोज सकते। वें कहते हैं, 'हम तो कुछ भी नहीं हैं, लेकिन जरा उनकी आंखों में झांककर देखना। वे कहते हैं, 'हम तो आपके चरणों की धूल हैं, लेकिन जरा उनकी आंखों में झांककर देखना, जरा देखना कि वे क्या कह रहे हैं।' मैं तुमसे एक कथा कहना चाहूंगा: रोगी ने शिकायत की, 'डाक्टर, मेरे सिर में बहुत भयंकर दर्द हो रहा है। आप इसके लिए कुछ कर सकते हैं" डाक्टर ने पूछा, 'क्या आप बहुत ज्यादा सिगरेट पीते हैं? रोगी ने उत्तर दिया, 'नहीं मैं तो सिगरेट छूता तक नहीं फिर शराब भी कभी नहीं पीता हूं और बीस साल से किसी स्त्री के साथ भी नहीं रहा हूं।" डाक्टर ने कहा ''ऐसी बात है, तो इसी कारण तुम्हारा सिर बहुत ज्यादा कस गया है।' जबर्दस्ती करने से यही होगा - तुम्हारा सिर बहुत ज्यादा कस जाएगा और हमेशा सिर में दर्द रहेगा। सभी तथाकथित धार्मिक व्यक्तियों के साथ ऐसा ही होता है। वे अत्यधिक जड़, ढोंगी, असहज और अप्रामाणिक हो जाते हैं। अगर उनको क्रोध भी आता है, तो ऊपर से वे मुस्कुराए चले जाते हैं। निस्संदेह, उनकी मुस्कुराहट नकली और झूठी होती है। इस तरह से वे अपने क्रोध को जोर-जबर्दस्ती से गहरे अचेतन में धकेल देते हैं; और व्यक्ति जिसका भी दमन करता है वही जीवन में फैलता चला जाता है, फिर वही उसकी जीवन-शैली बन जाती है। तब फिर ऐसा होता है कि एक तथाकथित धार्मिक आदमी क्रोधित होने के अपराध से तो बच सकता है, ऊपर से देखने पर वह क्रोधित दिखाई नहीं देता, लेकिन फिर क्रोध ही उसकी जीवन शैली बन जाता है। फिर शायद उसे क्रोध करते हु कभी नहीं देखा जा सके, लेकिन उसके व्यवहार से यह अच्छी तरह अनुभव किया जा सकता है वह सदा क्रोध में, गुस्से में ही रहता है। फिर क्रोध उसकी नस नस में और खून में बहने लगता है। जो कुछ भी वह करता है, अहंकार की एक अंतर्धारा उसके प्रत्येक कृत्य में दिखाई देती है। असल में जिस-जिस चीज पर व्यक्ति विजय पाता है, वह उनसे अधिक ही जुड़ जाता है और अपनी जीत को सिद्ध करने के लिए या उसके बचाव के लिए वह कुछ न कुछ करता ही रहता है। वह हमेशा उसके बचाव करने की कोशिश में ही लगा रहता है। -
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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