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________________ यक्ति अनूठा और बेजोड़ होता है। अगर सभी लोग बेजोड़ हैं, तो फिर वे प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के रूप में क्या कर रहे हैं? तब तो वे मूर्ख ही -मालूम होंगे। लेकिन वे अनूठे लोग हैं, चुने हुए लोग हैं, बाकी तो सभी सामान्य और साधारण हैं, भीड़ - भाड़ है। उनका अहंकार स्वयं को असाधारण सिद्ध करने के साथ ही एक और बात सिद्ध कर देता है कि बाकी लोग साधारण हैं। और वे यह भी कहते हैं कि तुमको अपनी असाधारणता सिद्ध करके दिखलानी ही होगी! फिर धनवान बनो, या राकफेलर हो जाओ, या राजनीति में पद हासिल कर लो, निक्सन बन जाओ या फोर्ड हो जाओ, या फिर कम से कम कोई बड़े कवि ही हो जाओ, इजरा पाउंड या क्यूमिग्ज बन जाओ, या बड़े चित्रकार, पिकासो या वानगाग बन जाओ, या कोई बड़े अभिनेता बन जाओ -बस कुछ बनकर दिखला दो, अपने को असाधारण सिद्ध करके दिखला दो। जीवन के किसी भी क्षेत्र में कुछ तो बन जाओ, स्वयं को विशिष्ट तो सिद्ध करके दिखला दो। बस, अपनी प्रतिभा, अपनी विशिष्टता, अपनी योग्यता को किसी भाति प्रमाणित करके दिखला दो। और फिर जो लोग स्वयं को किसी भी ढंग से असाधारण सिद्ध करके नहीं दिखा पाते हैं, वे जनसाधारण लोग हैं, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति असाधारण और विशिष्ट है। लेकिन मैं तुमको कहना चाहंगा कि प्रत्येक व्यक्ति विशिष्ट और असाधारण रूप में ही जन्म लेता है। इसे प्रमाणित या सिद्ध करने की कोई जरूरत नहीं है। और जो व्यक्ति इसे प्रमाणित या सिद्ध करना चाहते हैं, वे केवल इस बात की खबर दे रहे होते हैं कि उन्हें अपने अनूठेपन पर भरोसा नहीं है। थोड़ा इसे समझने की कोशिश करो। केवल हीन - भावना से ग्रस्त व्यक्ति, जिनके भीतर हीनभावना गहरे में बैठी है, स्वयं को श्रेष्ठ सिद्धन्कर३ की चेष्टा करते हैं। हीन- भावना व्यक्ति को प्रतियोगी होने में मदद देती है और स्वयं को श्रेष्ठ प्रमाणित करने के लिए प्रेरित करती है ताकि व्यक्ति यह सिद्ध कर सके कि वह श्रेष्ठ है। लेकिन मौलिक -रूप से, प्रत्येक व्यक्ति अनूठा ही पैदा होता है -और इसे प्रमाणित करने की या सिद्ध करने की कोई आवश्यकता भी नहीं है। अगर तुम्हें कविता रचने में सच में ही आनंद मिलता है तो इस सृजन से आनंदित हो लेना, लेकिन इसे अपना अहंकार मत बना लेना। अगर तुम्हें पेंटिंग बनाना अच्छा लगता है तो पेंटिंग बनाना, लेकिन इसे अपना अहंकार मत बना लेना। तुम थोड़ा इन चित्रकारों को, कवियों को ध्यान से देखो, वे इतने अधिक अहंकार से भरे हुए दिखाई देते हैं कि लगभग पागल ही मालूम होते हैं। इनको क्या हआ है? चित्र बनाना, कविता की रचना करना इनके लिए आनंद नहीं है। कविता रचने को या चित्र बनाने को वे मंजिल ने की सीढ़ियों की भांति उपयोग करते हैं, ताकि फिर वे यह घोषणा कर सकें कि मैं असाधारण हूं, अनूठा हूं, और तुम साधारण ही हो।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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