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________________ सकता है। इसका मतलब है बच्चे की आंखें अभी थिर नहीं -हई हैं। जिस दिन बच्चे की आंखें थिर हो जाती है फिर वह दिन छह महीने के बाद हो, या नौ महीने के बाद, या दस, या बारह महीने बाद हो, ठीक उतना ही समय लगेगा, फिर उतने ही समय के पूर्व आंखें शिथिल होने लगेंगी और ऊपर की ओर मुड़ने लगेंगी। इसीलिए भारत में गाव के लोग कहते हैं, निश्चित रूप से इस बात की खबर उन्हें योगियों से ही मिली होगी -कि मृत्यु आने के पूर्व व्यक्ति अपनी ही नाक की नोक को देख पाने में असमर्थ हो जाता है। आर भा बहत सा वाघचाह जिनका सी विधियां हैं जिनके माध्यम से योगी निरंतर अपनी नाक की नोक पर ध्यान देते हैं। वह नाक की नोक पर अपने को एकाग्र करते हैं। जो लोग नाक की नोक पर एकाग्र चित होकर ध्यान करते हैं, अचानक एक दिन वे पाते हैं कि वे अपनी ही नाक की नोक को देख पाने में असमर्थ हैं, वे अपनी ही नाक की नोक नहीं देख सकते हैं। इस बात से उन्हें पता चल जाता है कि मृत्यु अब निकट ही है। योग के शरीर-विज्ञान के अनुसार व्यक्ति के शरीर में सात चक्र होते हैं। पहला चक्र है मूलाधार, और अंतिम चक्र है सहस्रार, जो सिर में होता है, इन दोनों के बीच में पांच चक्र और होते हैं। जब भी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो वह किसी एक निश्चित चक्र के दवारा अपने प्राण त्यागता है। व्यक्ति ने किस चक्र से शरीर छोड़ा है, वह उसके इस जीवन के विकास को दर्शा देता है। साधारणतया तो लोग मूलाधार से ही मरते हैं, क्योंकि जीवनभर लोग काम -केंद्र के आसपास ही जीते हैं। वे हमेशा सेक्स के बारे में ही सोचते रहते हैं, उसी की कल्पनाएं करते हैं, उसी के स्वप्न देखते हैं, उनका सभी कुछ सेक्स को लेकर ही होता है -जैसे कि उनका पूरा जीवन काम -केंद्र के आसपास ही केंद्रित हौ गया हो। ऐसे लोग मूलाधार से, काम -केंद्र से ही प्राण छोड़ते हैं। लेकिन अगर कोई व्यक्ति प्रेम को उपलब्ध हो जाता है, और कामवासना के पार चला जाता है, तो वह हृदय - केंद्र से प्राण को छोड़ता है। और अगर कोई व्यक्ति पूर्णरूप से विकसित हो जाता है, सिद्ध हो जाता है, तो वह अपनी ऊर्जा को, अपने प्राणों को सहस्रार से छोड़ेगा। और जिस केंद्र से व्यक्ति की मृत्यु होती है, वह केंद्र खुल जाता है। क्योंकि तब पूरी जीवन-ऊर्जा उसी केंद्र से निर्मुक्त होती है ...... अभी कुछ दिन पहले ही विपस्सना की मृत्यु हुई। विपस्सना के भाई वियोगी से उसके सिर पर मारने को कहा गया, भारत में यह बात प्रतीक के रूप में प्रचलित है कि जब कोई व्यक्ति मरता है और उसे चिता पर रखा जाता है, तो सिर को डंडे से मारकर फोड़ा जाता है, उसकी कपाल-क्रिया की जाती है। यह एक प्रतीक है, क्योंकि अगर कोई व्यक्ति बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाता है, तो सिर अपने से ही फूट जाता है; लेकिन अगर व्यक्ति बुद्धत्व को उपलब्ध नहीं हुआ है, तो फिर भी हम इसी आशा और प्रार्थना के साथ उसकी खोपड़ी को तोड़ते हैं।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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