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________________ अब अगर चित्त एकाग्र हो, ध्यान करते हो, और समाधि के साथ तुम्हारे तार मिले हुए हैं, तो मृत्यु की ठीक -ठीक घड़ी को जाना जा सकता है। अगर संयम के साथ -साथ चैतन्य की ओर भी अग्रसर होते हो, तो इससे जो विराट शक्ति का उदय हुआ है, जब मृत्यु की घड़ी निकट आएगी, तुम्हें तुरंत पता चल जाएगा कि तुम कब मरने वाले हो। ऐसा कैसे होता है? जब किसी अंधेरे कमरे में हम जाते हैं, तो हमें कुछ दिखाई नहीं देता है कि वहा क्या है, क्या नहीं है। लेकिन जब कमरे में प्रकाश होता है तो कमरे में क्या है, और क्या नहीं है, हम देख सकते हैं। इसी तरह हम पूरे जीवन लगभग अंधकार में ही चलते रहते हैं, इसलिए हमको इस बात की जानकारी ही नहीं होती कि कितना प्रारब्ध कर्म अभी भी बचा हुआ है –प्रारब्ध कर्म यानी वे कर्म जिनका इस जीवन में चुकतारा करना है, भुगतान करना है। जब हम संयम में से होकर गुजरते हैं, तो हमारे भीतर तीव्र प्रकाश होता है, उस भीतर के प्रकाश से हम जान लेते हैं कि अभी कितना प्रारब्ध शेष बचा है। जब हम देखते हैं कि पूरा घर खाली है, बस घर के एक कोने में थोड़ा सा सामान, थोड़ी सी वस्तुएं रह गयी हैं, शीघ्र ही वे भी नहीं रहेंगी, वे भी बिदा हो जाएंगी। तो फिर भीतर के उस शून्य में हम देख सकते हैं कि हमारी मृत्य कब होने वाली है। रामकृष्ण के विषय में ऐसा कहा जाता है कि रामकृष्ण को भोजन में बहुत रस था, सच तो यह है भोजन ही उनकी एकमात्र अंतिम वासना रह गई थी। और उनके शिष्यों को रामकृष्ण की यह आदत कुछ अजीब सी लगती थी। यहां तक कि उनकी पत्नी शारदा भी रामकृष्ण की इस आदत से परेशान थीं, और कभी-कभी अपने आपको बहुत ही शर्मिंदा महसस करती थीं। क्योंकि रामकष्ण एक बड़े : थे उनकी दर-दर तक प्रसिदधि थी। लेकिन उनकी केवल यह एक ही बात बड़ी अजीब लगती थी कि वे खाने की वस्तुओं में जरूरत से ज्यादा रस लेते थे। उनका भोजन में इतना अधिक रस था कि जब वे अपने शिष्यों के साथ बैठे कुछ चर्चा कर रहे होते, और अचानक ही बीच में वे कहते, ठहरो, 'मैं अभी आता ह।' और वे रसोईघर में देखने चले जाते, कि आज क्या भोजन बन रहा है। रसोई घर में जाकर वे शारदा से पूछते, ' आज क्या भोजन बन रहा है?' और पूछकर फिर वापस लौट आते और अपना सत्संग फिर से शुरू कर देते। उनके निकट जो शिष्य थे, वे रामकृष्ण की इस आदत से परेशान और चिंतित थे। उन्होंने रामकृष्ण से कहा भी कि 'परमहंस देव, यह अच्छा नहीं लगता। और सभी कुछ इतना सुंदर है-इससे पहले इतना सुंदर और श्रेष्ठ आदमी कभी पृथ्वी पर नहीं हुआ लेकिन यह छोटी सी बात, आप अपनी इस आदत को छोड़ क्यों नहीं देते हैं। रामकृष्ण हंसे और उन्होंने उनकी बात का कुछ जवाब नहीं दिया। एक दिन उनकी पत्नी ने रामकृष्ण से यह जानने के लिए कि उनकी भोजन में इतनी रुचि क्यों है। बहुत ही अनुरोध किया। तब रामकृष्ण बोले, 'ठीक है, अगर तुम्हारा इतना ही अनुरोध है, तो मैं बताता हूं। मेरा प्रारब्ध कर्म समाप्त हो चुका है, और अब मैं केवल भोजन के माध्यम से ही इस शरीर से जुड़ा हुआ हूं। अगर मैं भोजन की पकड़ छोड़ दूं र तो मैं जीवित नहीं रह सकूँगा।'
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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