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________________ क्षणिक और बदलने वाले हैं। तुम्हारे भीतर ही शुद्ध चेतना विद्यमान है -जो अछूती है, और क्यारी है। वही शुद्ध चेतना तुम्हारा वास्तविक स्वभाव है। योग का- संपूर्ण प्रयास अस्तित्व के उसी शुद्ध स्वरूप तक, कुंआरेपन तक पहुंचने का है -उसी कुंआरेपन से जीसस का जन्म हुआ है। एक बार अगर तुम अपने उस कुंआरेपन को छू लो, तो तुम्हारा नया जन्म हो जाता है, तुम्हारा पुनर्जन्म हो जाता है। मुझे तुम्हारी मृत्यु बन जाने दो, ताकि तुम फिर से जन्म ले सको। सदगुरु मृत्यु भी है और जीवन भी, सूली भी है और पुनर्जीवन भी। तुम्हारे हाथ एकदम ठीक विधि लग गई है, अब आगे बढ़ो। उस शून्यता को, उस रिक्तता को धक आत्मसात करते जाओ, और भीतर से खाली और रिक्त हो जाओ। शीघ्र ही सब बदल जाएगा- अंत में शून्यता भी, रिक्तता भी विलीन हो जाएगी। पहले दूसरी बातें विलीन होती हैं और भीतर शून्यता एकत्रित होती जाती है, और फिर जब शून्यता समग्र हो जाती है तब वह भी विलीन हो जाती है। बुद्ध अपने शिष्यों से इस घटना के बारे में कहा करते थे कि यह ऐसे ही है जैसे रात तुम दीया जलाते हो। सारी रात दीया जलता रहता है। अग्नि की ली दीए को, दीए की बत्ती को जलाए रखती है। लौ उस दीपक को प्रज्वलित किए रहती है। दीए की बत्ती धीरे - धीरे जलती जाती है, और अंत में पूरी तरह जलकर राख हो जाती है। सुबह होने तक वह दीए की बाती पूरी तरह से जलकर राख हो चुकी होती है। अंतिम क्षण में, जब बत्ती जलकर राख होने वाली होती है, उस समय दीए की लौ भभककर जलती है और फिर विलीन हो जाती है। पहले वह दीए की बाती को मिटाती है, फिर वह स्वयं भी मिट जाती है। इसी तरह. अगर तुम शून्यता को, रिक्तता को, खालीपन को, अहंकार-शून्यता को आत्मसात करने का प्रयत्न करते हो, तो यह शून्यता पहले अन्य सभी कुछ को मिटा देगी। वह आग की लपट की भाति सभी को जलाकर राख कर देगी। जब सब कुछ मिट जाता है और तम परी तरह से खाली हो जाते हो; तब लौ की अंतिम छलांग-और तब शून्यता भी विलीन हो जाती है। और तब पूर्ण रूप से संतुष्ट, परिपूर्ण होकर तुम वापस घर लौट आते हो। यही वह घड़ी है जब मनुष्य परमात्मा हो जाता है। आज इतना ही।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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