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________________ क्योंकि निर्णय हमेशा मैं ही लेता था, इसलिए मैं जानता था कि चूंकि मैं ही गलत हूं इसीलिए भी कुछ गलत हो जाता है इस बार तो मेरी कोई गलती नहीं है? तभी आकाश में एक हाथ प्रकट हुआ और उस हाथ ने उसे विमान में से उठा लिया। वह बहुत खुश हुआ। और तभी आकाश से आवाज सुनायी दी, 'कौन सा फ्रांसिस? फ्रांसिस जेवियर या ऑसिसी के फ्रांसिस ? बताओ तुमने किसे पुकारा है!' अब फिर से वही मुसीबत तुम बचकर भाग नहीं सकते। भागोगे कहा, जीवन हमेशा जोखिम से भरा है। तुम्हें चुनाव करना ही पड़ेगा। और अपने चुनाव के द्वारा ही तुम विकसित होते हो, अपने स्वयं के चुनाव के द्वारा ही तुम परिपक्व होते हो। चुनाव परिपक्व होते हो। चुनाव से तुम गिरते भी हो और फिर से उठते भी हो। गिरने से कभी भयभीत मत होना, वरना तुम्हारे पांव चलने की क्षमता खो देंगे। और गिरने में कुछ गलत भी नहीं है। गिरना चलने का ही हिस्सा है, गिरना जीवन का ही हिस्सा है पीते और फिर से उठ खड़े हो, और हर बार का गिरना तुम्हें और अधिक मजबूत बना देगा, और जब जब तुम भटकोगे तुम पहले से अधिक मजबूत और अनुभवी हो जाओगे। अधिक सजग और जागरूक हो जाओगे । और फिर से अगर वही परिस्थिति तुम्हारे सामने आएगी, तो तुम उद्विग्न नहीं होंगे, और उस परिस्थिति से घबराओ नहीं। जीवन में जितनी गलतियां कर सकते हो, उतनी गलतियां करना - बस केवल एक बात खयाल रखना कि वही गलती बार - बार मत करना । और गलतियां करने में कुछ भी गलत नहीं है जितनी अधिक से अधिक गलतियां कर सकते हो, करो जितनी गलतियां अधिक कर सकी उतना ही अच्छा है क्योंकि जितना अधिक अनुभव होगा, उतनी अधिक जागरुकता तुममें आएगी। ऐसे ही मत बैठे रहना, अनिश्चय की मनःस्थिति में ही मत झूलते रहना। निर्णय लो! और निर्णय न लेना ही एकमात्र गलत निर्णय है, क्योंकि तब तुम सभी कुछ चूक जाते हो। थामस अल्वा एडीसन के विषय में कहा जाता है कि वह किसी प्रयोग को कर रहा था, और उस प्रयोग में हजारों बार वह असफल हुआ। कोई तीन साल से निरंतर वह उस पर कार्य कर रहा था, और वह उसमें बार-बार असफल हो रहा था। सभी तरह से उसने कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो पा रहा था। उसके साथ जो शिष्य थे वे हताश हो गए, निराश हो गए। एक दिन एक शिष्य ने एडीसन से कहा, 'आप कम से कम एक हजार बार प्रयोग कर चुके हैं और प्रत्येक प्रयोग असफल हो रहा है। लगता है हम आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।' एडीसन ने उस शिष्य की तरफ आश्चर्य से भरकर देखा, और कहा, 'तुम कह क्या रहे हो? आखिर तुम कहना क्या चाहते हो? हम कहीं नहीं बढ़ रहे हैं? हमारे सामने एक हजार गलत द्वार बंद हो चुके हैं, अब ठीक द्वार कोई बहुत दूर नहीं होगा। हमने एक हजार गलतियां कर ली हैं, इतना तो हम सीख ही चुके हैं। ऐसा कहकर तुम क्या यह कहना चाहते हो कि हम अपना समय व्यर्थ बर्बाद कर रहे हैं? अब यह एक हजार गलतियां हमें अपनी ओर आकर्षित नहीं
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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