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________________ संन्यासी होने का अर्थ है, चेतना में भ्रमण करते रहना। संन्यासी होने का अर्थ है, घुमक्कड़-चेतना के जगत में चलते जाना, चलते जाना और खोजते जाना ऊपर चढ़ो, ऊंची उड़ान भरो, मंजिल आकाश में हो, दृष्टि चांद-तारों में हो।' और मन की कभी भी मत सुनना । एक रात को ऐसा हुआ एक पुलिसवाला देख रहा था कि एक शराबी व्यर्थ ही अपने घर की चाबी को लॅप पोस्ट में लगाने की कोशिश कर रहा है। 'इससे कुछ न होगा भाई, सिपाही बोला, 'घर में कोई है ही नहीं।' 'यही तो तुम गलत सोच रहे हो, नशे में झूमते हुए उस आदमी ने जवाब दिया, 'देखो ऊपर की मंजिल में बिजली जल रही है।" मन डांवाडोल और नशे में है। वह कारण बताए चला जाता है। वह कहता है, ' अब और क्या बचा है?' अभी कुछ दिन पहले एक राजनीतिज्ञ मेरे पास आए। वह कहने लगे, ' अब पाने को और क्या है? मैं एक छोटे से गांव में, एक गरीब परिवार में पैदा हुआ था। और अब मैं कैबिनेट मंत्री बन गया हूं। अब जीवन में और क्या चाहिए?' कैबिनेट स्तर का मंत्री? और वह पूछता है अब जीवन में और क्या चाहिए? वह अपने मंत्री होने से संतुष्ट है। गांव के एक गरीब परिवार में पैदा होकर इससे अधिक और क्या आशा की जा सकती है? जबकि पूरा आकाश उपलब्ध है, लेकिन वे कैबिनेट मंत्री होकर ही संतुष्ट हैं। इसी तरह समाप्त मत हो जाना तब तक संतुष्ट मत हो जाना, जब तक कि तुम परमात्मा ही न हो जाओ! तब तक राह के किनारे कुछ विश्राम कर लेना, लेकिन हमेशा ध्यान रहे. यह केवल रात का पड़ाव है, सुबह होते ही फिर से चल पड़ना है। कुछ लोग ऐसे हैं जो अपनी सांसारिक उपलब्धियों से ही संतुष्ट हो जाते हैं। और कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपनी सांसारिक उपलब्धियों से ही संतुष्ट नहीं हैं, लेकिन जो पंडित पुरोहितों की दिलाई हुई आशाओं से संतुष्ट हैं। यह जो दूसरी कोटि के लोग जिन्हें तुम धार्मिक कहते हो यह लोग भी कोई धार्मिक नहीं हैं, क्योंकि धर्म का कोई संबंध कानों से नहीं है कोई दूसरा व्यक्ति तुम्हें धर्म नहीं दे सकता, धर्म तो तुम्हें अर्जित करना होता है। धर्म के नाम पर पंडित पुरोहित केवल आशाएं और सात्वनाएं ही देते हैं, और सभी सांत्वनाएं 1 खतरनाक हैं क्योंकि वे एक तरह की अफीम हैं। वे व्यक्ति को नशे से भर देती हैं। ऐसा हुआ. . प्राथमिक चिकित्सा की कक्षा की एक परीक्षा में एक पादरी से पूछा गया ( वह भी प्राथमिक चिकित्सा का प्रशिक्षण ले रहा था), अगर बेहोशी की हालत में पड़ा कोई आदमी आपको मिल जाए तो आप क्या करोगे?'
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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