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________________ तभी एक स्त्री अपने पति के कान में फुसफुसायी, 'ऐसा लगता है कि जैसे यहां एकमात्र अच्छा आदमी यह पादरी ही है।' तो उस आदमी ने अपनी स्त्री से कहा, 'तुमने ऐसा कैसे मान लिया? हम लोगों में से सबसे पहले तो वही खड़ा हुआ था।' यह सुपर ईगो जो निरंतर निंदा किए चला जाता है, जो निरंतर कहे चला जाता है कि ऐसा करना पाप है, यह खराब है, वह गलत है, यह बुरा है, वह स्वयं ही संसार की एकमात्र बुराई, एकमात्र पाप होता है। तो फिर हम क्या करें? फिर हम अहंकार की ही निंदा करने लगते हैं, और तब हम उस निंदा के द्वारा महा-अहंकार को निर्मित कर लेते हैं। निंदा के भाव को गिरा दो-सभी तरह की निंदा के भाव कोऔर तब फिर बिना किसी महा – अहंकार को बनाए ही अहंकार मिट जाता है। सभी तरह की निंदा को गिरा देना। क्योंकि निर्णय करने वाले हम कौन होते हैं? क्या गलत है और क्या सही है, यह कहने वाले हम कौन होते हैं? अस्तित्व को दो भागों में विभक्त करने वाले हम कौन होते हैं? अस्तित्व एक है। अस्तित्व एक जीवंत इकाई है, एक आर्गेनिक यूनिटी है। फिर दिन और रात, अच्छा और बुरा-सभी एक हैं। ये जो भेद हैं, ये मनुष्य के द्वारा बनाए हुए अहंकार के भेद है-ये भेद मनुष्य के द्वारा निर्मित हैं। बस, तुम किसी भी चीज की निंदा मत करना। अगर हम किसी भी बात की निंदा करते हैं, तो हम कुछ न कुछ निर्मित करते चले जाएंगे। किसी भी बात की निंदा करना बंद करो, और फिर देखो तुम पाओगे कि कहीं कोई अहंकार नहीं बचता है। तो वास्तविक समस्या अहंकार की नहीं है। वास्तविक समस्या तो निंदा करने की, किसी भी बात के लिए अपना मंतव्य बना लेने की, और चीजों को विभक्त करने की है। इसलिए अहंकार के बारे में भूल जाओ, क्योंकि जो कुछ भी तुम अहंकार के साथ करोगे वह एक और नया अहंकार खड़ा कर लेगा। इस पृथ्वी पर जितने व्यक्ति हैं, उतने ही अहंकार हैं। किसी को इस बात का अहंकार होता है कि मेरे धन है, पद है, प्रतिष्ठा है, और किसी को इस बात का अहंकार होता है कि मैं बडा धार्मिक आदमी हं। कोई व्यक्ति यह बताना चाहता है कि उसके पास कितना धन है, और पद है, प्रतिष्ठा है; और कोई व्यक्ति घोषणा करके यह सिद्ध करना चाहता है उसने कितना त्याग किया है। लेकिन दोनों के अहंकार में फर्क जरा भी नहीं है। एक तथाकथित संत मत्य -शय्या पर था और उसके सभी शिष्य उसके आसपास इकट्ठे हो गए थे। गुरु अपने जीवन की अंतिम घड़ियां गिन रहा था और उसके शिष्य शय्या के निकट ही अपने गुरु के बारे में बातचीत कर रहे थे।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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