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________________ किसी व्यक्ति के विचारों के अभिप्राय का ज्ञान, या उसके प्रयोजन का ज्ञान केवल तभी हो सकता है, जब व्यक्ति निर्बीज समाधि को उपलब्ध हो जाए। इससे पहले विचारों के अभिप्राय का ज्ञान संभव नहीं है। क्योंकि अभिप्राय को जानना बहुत ही सूक्ष्म बात है। उसकी कोई प्रतिछवि नहीं होती कुछ भी दिखाई नहीं देता, क्योंकि वह आदमी के गहरे अचेतन में छिपी हुई उसकी इच्छा होती है। जब व्यक्ति पूरी तरह से सजग और जागरूक हो जाता है और जब उसकी सभी इच्छाएं तिरोहित हो जाती हैं तब देखना। जब विचार बिदा हो जाते हैं तो हम दूसरों के विचारों को पढ़ने में सक्षम हो जाते हैं जब हमारी इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं तो हम दूसरों की इच्छाओं को जानने में सक्षम हो जाते हैं। 'ग्राह्य-शक्ति को हटा देने के लिए, शरीर के स्वरूप पर संयम संपन्न करने से द्रष्टा की आख और शरीर से उठती प्रकाश किरणों के बीच संबंध टूट जाता है, और तब शरीर अदृश्य हो जाता है।' तुमने उन योगियों की कथाएं-कहानियां अवश्य सुनी होंगी जो अदृश्य हो सकते हैं। पतंजलि हर बात को वैज्ञानिक नियम में बिठाने का प्रयास करते हैं। पतंजलि का कहना है, इसमें भी कोई चमत्कार नहीं है। व्यक्ति किसी अनकूल नियम के तहत भी अदृश्य हो सकता है। और वह नियम क्या है? अब भौतिक-विज्ञान कहता है कि अगर हम एक-दूसरे को देख पाते हैं तो केवल इसीलिए देख पाते हैं, क्योंकि सूर्य की किरणें हम पर पड़ रही हैं और फिर वे सरकती हुई, हमसे प्रतिबिंबित होती हैं। वे सूर्य की किरणें हमारी आंखों पर पड़ रही हैं, इसीलिए तो हम एक-दूसरे को देख पाते हैं अगर कोई ऐसा तरीका हो कि हम सर्य की किरणों को सोख लें और वे फिर प्रतिबिंबित न हों, तो हम एक-दसरे को नहीं देख सकेंगे। हम केवल तभी देख सकते हैं जब सूर्य की किरणें हम तक आती हैं। अगर अंधकार हो और कहीं से भी सूर्य की किरणें न आ रही हों तो हम नहीं देख सकते हैं। लेकिन अगर हम सभी सूर्य –किरणों को केवल सोखते जाएं और वापस कुछ भी प्रतिबिंबित न हो, तो हम एक - दूसरे को नहीं देख सकेंगे। फिर केवल एक काला धब्बा ही दिखायी देगा। यही आधुनिक भौतिक -विज्ञान कहता है; इसी भांति हम रंगों को देखते हैं। उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति लाल रंग के कपड़े पहने हुए हो, तो मैं देख सकता हूं कि वह लाल रंग के कपड़े पहने हए है। इसका क्या अर्थ है त्र: इसका केवल इतना ही अर्थ है कि उसके वस्त्र लाल रंग की किरणों को वापस फेंक रहे हैं। और शेष सारी किरणें वस्त्रों के दवारा सोख ली जा रही हैं। केवल लाल रंग की किरण ही वापस आ रही है। जब सफेद रंग को देखते हैं, तो उसका अर्थ होता है कि सभी किरणें वापस फेंकी जा रही हैं। सफेद कोई रंग नहीं है; सभी रंग वापस फेंके जा रहे हैं। सफेद रंग का अर्थ है, सभी रंगों का जोड़। अगर सभी रंगों को एकसाथ मिला दिया जाए, तो वे सफेद बन जफ्रे हैं। सफेद का अर्थ है सभी रंग, इसलिए वह कोई रंग नहीं है। और अगर काला वस्त्र हो, तो कुछ भी वापस नहीं फेंका जा रहा है, सभी किरणें उसमें समाहित हो रही हैं। इसीलिए काले वस्त्र काले दिखायी पड़ते है। काला रंग भी कोई रंग नहीं है; वह रंग - विहीन है। काले रंग के दवारा सभी सूर्य की किरणों को सोख लिया जाता है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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