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________________ अदभुत शक्ति भी होती है। लेकिन योग कोई शक्ति –यात्रा नहीं है, और एक सच्चा योगी, एक सच्चा साधक ऐसा कभी करेगा भी नहीं। लेकिन ऐसा घटित होता है। कुछ ऐसे लोग हैं जो केवल उस शक्ति को उपलब्ध करने की ही कोशिश करते हैं, उसके लिए ही ध्यान –साधना करते हैं -और उसे उपलब्ध किया भी जा सकता है। उस शक्ति को बिना धार्मिक हुए भी पाया जा सकता है। योग के वास्तविक शिष्य हुए बिना भी उसे पाया जा सकता है। और कभी-कभी ऐसा संयोगवश भी घटित? हो जाता है। अगर हमारा मन किसी ढंग से मौन और शांत हो जाता है, तो हम दूसरे के मन के विचारों के प्रतिबिंब को देखने में समर्थ हो सकते हैं क्योंकि अगर हमारा मन शांत और मौन है तो दूसरा मन हमसे बहुत दूर नहीं है, वह हमारे निकट ही है। जब हमारा मन विचारों की भीड़ से भरा होता है, तब दूसरे का मन हमसे दूर चला जाता है क्योंकि हमारे अपने ही विचारों की भीड़ हमारा स्वयं के ध्यान को भंग कर देती है। हमारे स्वयं के भीतर चलते विचारों का शोर इतना अधिक होता है कि तब हम दूसरे के विचारों को नहीं सुन पाते हैं। क्या कभी तुमने ध्यान दिया है? कई बार साधारण आदमी, जिसका ध्यान से कोई लेना-देना नहीं है, जिसका योग से या किसी टेलिपैथी शक्तियों से कोई संबंध नहीं है, या जिसका किन्हीं देहातीत अलौकिक संवेदन-शक्तियों से कोई संबंध नहीं है, वे भी कई बार स्वयं में घटने वाली किन्हीं - किन्हीं बातों के प्रति सजग हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, अगर दो प्रेमी एक-दूसरे को अत्यधिक प्रेम करते हैं, तो धीरे-धीरे उनका एकदूसरे के साथ इतना तालमेल बैठ जाता है कि उन्हें आपस में एक-दूसरे के विचारों का पर लगता है। पत्नी को पति के मन में क्या चल रहा है इसका पता चल जाता है। और हो सकता है वह इस बात के प्रति वह जागरूक न हो, लेकिन फिर भी सूक्ष्म रूप से वह यह अनुभव करने लगती है कि पति के मन में क्या चल रहा है। चाहे यह बात उसे एकदम से स्पष्ट न भी हो, हो सकता है यह सब कुछ 'कछ उसको बहत ही धंधले रूप में हो, उसे एकदम साफ न हो, अस्पष्ट हो; लेकिन फिर भी अगर प्रेमी एक-दसरे के साथ गहन प्रेम में हों, तो वे धीरे-धीरे एक दूसरे के विचारों को, भाव को अनुभव करने लगते हैं। कोई मां अगर वह बच्चे को प्रेम करती है, तो बच्चे के बिना कुछ कहे, बिना कुछ उसके बताए, वह बच्चे की आवश्यकताओं को जान लेती है। कहीं न कहीं कोई ऐसा सूक्ष्म धागा होता है, जिसके द्वारा हम दूसरे से जुड़े होते हैं। इसी सूक्ष्म धागे के माध्यम से हम सभी लोग इस विराट अस्तित्व के साथ जुड़े हए हैं। पतंजलि कहते हैं, ' संयम के दवारा ' एकाग्रता को उपलब्ध करने से, आंतरिक संतुलन, समाधि, मौन और शाति को पाने से, ' दूसरे के मन को जिस प्रतिछवि ने घेरा हआ है, उसे जाना जा सकता है।'
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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