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________________ अस्तित्व से अलग किसी द्वीप की भाति हो जाती है, तो वह कुरूप और असुंदर हो जाती है। अगर वह इस विराट अस्तित्व का हिस्सा बनी रहती है, तो सुंदर होती है, फिर उसके अपने उपयोग हैं। जो व्यक्ति परम विवेकशील होता है, वह बुद्धि के विपरीत नहीं होता है, बल्कि वह बुद्धि के पार होता है। वह जानता है कि बुद्धि और अविवेक दोनों ही दिन और रात की तरह जीवन और मृत्यु की तरह जीवन के हिस्से हैं। तब ऐसे व्यक्ति के लिए उनमें कोई विरोधाभास नहीं रह जाता है, उसके लिए वे एक दूसरे के पूरक हो जाते हैं। झेन का ढंग अतिक्रमण का है। पतंजलि का ढंग गणित का है, तर्क का है। अगर तुम पतंजलि के साथ चलो, तो अंत में परम शिखर पर पहुंचकर तुम तर्कातीत तक पहुंच जाओगे। सच तो यह है, जैसे साधारण धार्मिक व्यक्ति विज्ञान से और गणित से और तर्क से भयभीत रहता है, वैसे ही वे लोग जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण को पकड़े हैं, वे झेन से भयभीत रहते हैं। अगर तुम आर्थर कोएस्लर की पुस्तकें पढ़ो, तो पाओगे कि वह है तो बड़ा तर्कपूर्ण व्यक्ति, लेकिन वह उसी स्थिर दशा में मालूम होता है जिसमें कि साधारण धार्मिक व्यक्ति पड़े हुए हैं। अब तर्क ही उसका धर्म बन गया है और कोएस्लर झेन से बहुत भयभीत है। जो कुछ भी उसने झेन के विषय में लिखा है उसमें उसका भय, उसकी घबड़ाहट और उसकी शंका मौजूद है क्योंकि झेन तो सभी तरह की कोटियों और श्रेणियों को तहस-नहस कर देता है। - , तुम्हारे तथाकथित ईसाई, हिंदू, मुसलमान धर्म, वे सब तर्क - बुद्धि से नीचे पड़ते हैं। कुछ थोड़े से असाधारण ईसाई संत जैसे इकहार्ट, ब्रोहेम, सूफी फकीर कबीर, ये सब बुद्धि के तर्क के पार हैं। सामान्य मनुष्य-जाति के लिए, या एक सामान्य धार्मिक व्यक्ति के लिए, झेन की ओर अग्रसित होने में, पतंजलि सेतु का कार्य कर सकते हैं। झेन और मनुष्य-जाति के बीच केवल पतंजलि ही एकमात्र सेतु हैं; दूसरा अन्य कोई सेतु नहीं है जो झेन को सामान्य मनुष्य से जोड़ सके पतंजलि अंतर्जगत के वैज्ञानिक हैं। मनुष्य दो तरह का जीवन जी सकता है एक तो बर्हिमुखी जीवन, बाहर बाहर का बर्हिमुखी जीवन । और मनुष्य एक दूसरी तरह का जीवन भी जी सकता है अंतर्मुखी जीवन, अंतर्मुखता का जीवन । पतंजलि इन दोनों के बीच सेतु हैं। जिसे पतंजलि संयम कहते हैं, वह अंतर और बाह्य के बीच का संतुलन है ऐसा संतुलन जहां कि व्यक्ति मध्य में खड़ा होता है, कोई भी उसका मार्ग अवरुद्ध नहीं कर सकता, वह अंदर और बाहर दोनों जगत के लिए उपलब्ध रहता है। - इसीलिए पतंजलि आइंस्टीन से कहीं ज्यादा बड़े वैज्ञानिक हैं। किसी न किसी दिन आइंस्टीन को अंतर्जगत के विज्ञान के बारे में पतंजलि से सीखना होगा। लेकिन पतंजलि को आइंस्टीन से कुछ भी नहीं सीखना है, क्योंकि बाह्य जगत के विषय में जो भी ज्ञान होता है, वह सूचना से अधिक कुछ नहीं होता है। वह कभी भी सच्चा, प्रामाणिक और वास्तविक ज्ञान नहीं बन सकता है, क्योंकि अंततः हम
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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