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________________ समस्याओं के उत्तर मिल रहे हैं। और मेरे निकट होने की अपेक्षा यह अनुभूति कहीं ज्यादा सुंदर होगी, क्योंकि तब शरीर की निकटता न रहेगी। और तब यह अनुभव और अधिक प्रगाढ़ होता है। और अगर तुम ऐसा कर सको तो सभी तरह के स्थान की दूरी खो जाती है। क्योंकि सदगुरु और शिष्य के बीच कहीं कोई स्थान की दूरी नहीं होती है। और तब फिर एक और चमत्कार की संभावना है तब एक दिन समय को भी गिरा देना। क्योंकि एक न एक दिन मैं इस शरीर को छोड़ दूंगा, मैं यहां तुम्हारे बीच शरीर में मौजूद नहीं रहूंगा। अगर मेरे शरीर छोड़ देने के पहले तुम समय का अतिक्रमण नहीं कर पाते हो, तब तो फिर मैं तुम्हें उपलब्ध नहीं रह सकूँगा, तब तो मैं तुम्हें अनुपलब्ध ही रहूंगा। ऐसा नहीं है कि मैं अनुपलब्ध रहूंगा, मैं तो उपलब्ध रहूंगा ही, लेकिन यह तुम्हारा ही विचार होगा कि मैं संसार से बिदा हो चुका हूं तो तुम मुझसे कैसे जुड़ सकते हो. तब तुम मेरे प्रति बंद हो जाओगे। यह तुम्हारा अपना विचार है। तो सबसे पहले समय और स्थान से जुड़े विचार को गिरा देना। तो जहां कहीं भी तुम हो, भारतीय समय के अनुसार ठीक आठ बजे ध्यान में बैठना, और फिर समय को भी गिरा देना। किसी भी समय ध्यान में बैठने की कोशिश करना। पहले स्थान की सीमा को गिरा देना, फिर समय की सीमा को भी गिरा देना। और यह जानकर तुम आनंदित होगे कि जहां कहीं भी तुम हो, मैं तुम्हें उपलब्ध हू। फिर कहीं कोई समस्या नहीं रह जाती है, तब फिर कोई प्रश्न नहीं रह जाता बुद्ध ने जब शरीर छोड़ा तो उनके बहुत से शिष्य रोने -चिल्लाने लगे, लेकिन कुछ शिष्य थे जो बस शांत और मौन बैठे रहे। उन शिष्यों में मंजुश्री भी वहां था। वह बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में से एक शिष्य था, वह पेड़ के नीचे बैठा हुआ था, वह वैसा का वैसा ही बैठा रहा। उसने जब सुना कि बुद्ध ने शरीर छोड़ दिया है, तो वह ऐसे ही बैठा रहा जैसे कि कुछ हुआ ही न हो। यह मनुष्य-जाति के इतिहास की बड़ी से बड़ी घटनाओं में से एक घटना है। क्योंकि इस पृथ्वी पर कभी -कभार ही बुद्ध जन्म लेते हैं, तो बुदध के संसार से चले जाने की बात ही नहीं उठती है; कभी सदियों में ऐसा घटित होता है। मंजुश्री के पास किसी ने जाकर कहा कि 'यहां इस वृक्ष के नीचे बैठे हुए आप क्या कर रहे हैं? क्या आपको यह बात सुनकर इतना अधिक सदमा पहुंचा है कि आप हिल – डुल भी नहीं रहे हैं? क्या आपको नहीं मालूम है कि बुद्ध ने शरीर छोड़ दिया है।' मंजुश्री हंसा और बोला, 'उनके जाने के पहले ही मैंने समय और स्थान की दूरी को गिरा दिया था। वे जहां कहीं भी होंगे, मेरे लिए उपलब्ध रहेंगे। इसलिए मुझे ऐसी व्यर्थ की सूचनाएं मत दो।' मंजुश्री अपनी जगह से हिला भी नहीं। बुद्ध के अंतिम समय में वह बुद्ध के दर्शन के लिए भी नहीं गया। वह एकदम शांत और मौन था। वह जानता था कि बुद्ध की मौजूदगी किसी समय और स्थान में सीमित नहीं है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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