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________________ किया कि किस तरह से एक बांस आकाश के सामने खड़ा होता है हवा का सामना करता है, वर्षा की बौछारों में कैसे झूमता -नाचता है, सूर्य की ऊष्मा में किस गर्व के साथ वह खड़ा होता है, अगर तुमने उसे अनुभव नहीं किया, तो तुम एक बांस की पेंटिंग कैसे बना सकोगे? अगर तुमने बास से गुजरती ओं को उस तरह से नहीं सुना, जिस तरह कोई बांस सुनता है, अगर तुमने बांस पर पड़ती वर्षा की फुहारों को वैसे नहीं जाना, जैसे बांस जानता है, तो कैसे तुम बांस को पेंटिंग में उतार सकोगे? एक कोयल की आवाज को बास किस प्रकार से सुनेगा, अगर तुमने नहीं सुना, तो तुम कैसे बांस की पेंटिंग बना सुकोगे? तब तुम बौस की पेंटिंग एक फोटोग्राफर की तरह बनाओगे तब तुम एक कैमरा हो सकते हो लेकिन एक कलाकार नहीं। कैमरा विज्ञान की देन है। कैमरा वैज्ञानिक उपकरण है। वह तो केवल बांस के बाह्य रूप को ही दिखाता है। लेकिन जब कोई गुरु बांस को देखता है, तो वह उसका बाह्य रूप ही नहीं देख रहा होता है। वह धीरे-धीरे स्वयं को गिराता जाता है। उसकी चेतना का संपूर्ण प्रवाह बांस में समा जाता है, बास पर उतर आता है. तब वे अलग - अलग नहीं रहते, वे एक -दूसरे में समाहित हो जाते हैं, दोनों एक हो जाते हैं। फिर यह कहना बहुत कठिन होता है कि कौन बांस है और कौन चेतना है -सब कुछ एक-दूसरे में समा जाता है, घुल-मिल जाता है, दोनों की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं। दूसरा चरण ध्यान का कला का मार्ग है। इसीलिए कई बार कलाकारों को रहस्यदर्शियों जैसी झलकें मिलती हैं। इसलिए कई बार काव्य वह कह देता है, जिसे गद्य में कभी नहीं कहा जा सकता, जिसे कहने का उपाय ही नहीं है; और कई बार पेंटिंग्स ऐसी झलक दे देती हैं, जिसे अभिव्यक्त करने का और कोई उपाय ही नहीं है। किसी धार्मिक व्यक्ति की अपेक्षा एक कलाकार रहस्यदर्शी के कहीं अधिक निकट होता है। अगर कोई, व्यक्ति कवि होने पर ही रुक गया, तो उसका विकास रुक जाता है, कवि को तो सतत बहना होता है, आगे बढ़ना होता है. पहले एकाग्रता से ध्यान तक और फिर ध्यान से समाधि तक। उसे तो चलते ही जाना है, आगे बढ़ते ही जाना है। ध्यान विषय की ओर बहते हुए मन का अविच्छिन्न प्रवाह है। थोड़ा इसे अनुभव करना। और अच्छा होगा कि ध्यान के लिए कोई ऐसा विषय चुनना जिसे कि तुम प्रेम करते हो। अपने प्रेमी या प्रेमिका को, या किसी बच्चे को या किसी फूल को चुन सकते हो-कोई भी चीज जिसे तुम प्रेम करते होंक्योंकि जिससे प्रेम होता है उसके साथ बिना किसी बाधा के विषय में उतरना आसान होता है। कभी अपने प्रेमी या प्रेमिका की आंखों में झांकना। पहले पूरे संसार को भूल जाना, अपने प्रेमी या प्रेमिका को ही पूरा संसार बन जाने देना। फिर उसकी आंखों में झांकते हुए एक सतत प्रवाह बन जाना, अविच्छिन्न प्रवाह-जैसे एक बर्तन से दूसरे बर्तन में तेल डाला जा रहा हो। जब एक बर्तन से दूसरे बर्तन में तेल डाला जाता है, तो बीच में थोड़ा भी अंतराल नहीं आता है, कोई तारतम्य नहीं टूटता
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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