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________________ सहायक ने थोड़ी हैरानी के साथ कहा, क्या कहा बोलता भी है? पिछले पांच मिनट से वही तो आपके खिलाफ बोली लगा रहा था।' लेकिन हम तो अपने ही विचारों में ऐसे घिरे रहते हैं कि सुनता ही कौन है तोते की कौन सुनता है? लोग तो अपने प्रेमियों की भी नहीं सुनते हैं। पत्नी की कौन सुनता है? पति की कौन सुनता है? पिता की कौन सुनता है? या बच्चे की कौन सुनता है? अपने ही मस्तिष्क में चलते विचारों में ऐसे तल्लीन और व्यस्त रहते हैं, अपने ही विचारों के घेरे से जकड़े रहते हैं, कि सुनने की कोई संभावना ही नहीं बचती है। सुनने के लिए मौन और शांत चित चाहिए। सुनने के लिए जागरूकता और सजगता चाहिए रहती है। सुनने के लिए एक गहन सहनशीलता और ग्राहकता की आवश्यकता होती है। श्रवण की कला ध्यान, सजगता, होश, और बोध की कला है, लेकिन यह तभी संभव है जब व्यक्ति निष्क्रिय और निश्चेष्ट हो। 'अतीतगत संस्कारबद्धताओं का आत्म-साक्षात्कार कर उन्हें पूरी तरह समझने से पूर्व जन्मों की जानकारी मिल जाती है।' और जब व्यक्ति मौन हो जाता है, शांत हो जाता है - जिसे पतंजलि एकाग्रता परिणाम' कहते हैं वह रूपांतरण ही चेतना की एकाग्रता उपलब्ध करा देता है। जब वह एकाग्रता उपलब्ध हो जाती है तब अतीत के संस्कारों को देखना संभव है। तब व्यक्ति अपने अतीत में जाकर अपने पूर्व जन्मों को देख सकता है। और अपने पूर्व – जन्मों को देख लेना बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि अगर व्यक्ति अपने पूर्व – जन्मों को देख ले, तो तत्क्षण व्यक्ति कुछ अलग हो जाता है, फिर वह वही व्यक्ति नहीं रह जाता है। उसमें कुछ रूपांतरण हो जाता है क्योंकि आदमी वह सब भूल जाता है जिसे वह पहले भी जी चुका है, और फिर वही वही नासमझियों को दोहराए चला जाता है। - - अगर हम पीछे की ओर मुड़कर अपने पूर्व – जन्मों में झांक सकें तो हम पाएंगे कि हम फिर - फिर उसी ढर्रे –ढांचे, उसी बंधी – बधाई लकीरों में जीते रहे हैं... कि उसी तरह से ईर्ष्या से भरे हु थे, दूसरों के मालिक होना चाहते थे, घृणा और क्रोध था 'लालची थे, कि तुम संसार में स्वयं की सत्ता कैसे स्थापित हो जाए इसका प्रयत्न करते रहे किसी भी तरह से धन, सफलता और महत्वाकांक्षा की प्राप्ति हो जाए और हमेशा असफलता ही हाथ लगी और हमेशा की तरह मृत्यु ने आ घेरा, और सभी कुछ छिन्न-भिन्न हो गया। लेकिन फिर से जन्म और वही खेल फिर से शुरू हो जाता है. अगर व्यक्ति अपने पूर्व जन्मों में फैले अपने अनंत जन्मों को देखने में सक्षम हो सके तो फिर वैसे के वैसे बने रहना संभव नहीं है? और जब एक बार वही क्रोध, वही घृणा, वही लोभ, वही हताशा को देख लेने पर उसी तरह से जीए चले जाना संभव नहीं है? लेकिन हम हर बार भूल जाते हैं। हमारा अतीत अज्ञात में धूमिल होकर गहन अंधकार में खो जाता है। हमें पूर्व जन्मों का पूर्णतः विस्मरण हो जाता है, कुछ भी याद नहीं रहता। हमारी स्मृति पर
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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