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________________ एक बार मुल्ला नसरुद्दीन रेलगाड़ी से उतरा तो घबराया हुआ सा था, उसका रंग एकदम फीका पड रहा था। मैं उसे लेने स्टेशन गया था। उसने बताया, 'दस घंटे तक गाड़ी की विपरीत दिशा में बैठकर सफर करना, इस बात को मैं सहन नहीं कर सकता था।' 'क्यों?' मैंने पूछा, 'तुमने सामने बैठे व्यक्ति से सीट बदल लेने के लिए क्यों नहीं कहा?' 'मैं ऐसा नहीं कर सकता था,' मुल्ला ने कहा, 'वहां कोई था ही नहीं।' तुम्हारी प्रार्थना सुनने के लिए वहां आकाश में कोई नहीं बैठा है। जो कुछ भी करना चाहते हो, करो। वहा आकाश में कोई नहीं है जो तुम्हें वैसा करने की इजाजत देगा। जो कुछ होना चाहते हो, हो जाओ। वहा आकाश में कोई परमात्मा बैठा हुआ नहीं है, जिससे तुम अनुमति लो। अस्तित्व तो मुक्त है और उपलब्ध है। यही योग की पूरी समझ है कि अस्तित्व प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपलब्ध है। जो कुछ भी तुम होना चाहते हो, हो सकते हो। सभी कुछ उपलब्ध है। किसी की स्वीकृति की प्रतीक्षा मत करो, क्योंकि वहां कोई नहीं है। सामने की सीट खाली है -अगर तुम उस पर बैठना चाहते हो तो बैठ सकते हो। मुल्ला पागल मालूम होता है, अजीब लगता है, लेकिन पूरी मनुष्य जाति सदियों –सदियों से यही तो कर रही है. आकाश की ओर हाथ उठाकर प्रार्थना कर रही है और अनुमति मांग रही है। और मजेदार बात यह है उससे, जो वहां मौजूद ही नहीं है। प्रार्थना नहीं, ध्यान करो। और प्रार्थना और ध्यान में अंतर क्या है? जब तुम प्रार्थना करते हो तो तुम्हें किसी में विश्वास करना पड़ता है कि वह तुम्हारी प्रार्थना सुन रहा है। जब तुम ध्यान करते हो तो तुम अकेले ही ध्यान करते हो। प्रार्थना में दूसरे की जरूरत होती है, ध्यान में तुम अकेले ही पर्याप्त होते हो। योग ध्यान है। उसमें प्रार्थना के लिए कोई स्थान नहीं है, क्योंकि उसमें परमात्मा के लिए कोई जगह नहीं है। उसमें परमात्मा के लिए किसी बचकानी धारणा के लिए कोई स्थान नहीं है। स्मरण रहे अगर तुम सच में ही धार्मिक होना चाहते हो, तो तुम्हें नास्तिकता से होकर गुजरना ही होगा। अगर तुम सच में ही प्रामाणिक रूप से धार्मिक होना चाहते हो, तो आस्तिकता से प्रारंभ मत करना। नास्तिक होने से प्रारंभ करना। अदम से प्रारंभ करना। अदम क्राइस्ट का प्रारंभ है। अदम वर्तुल का प्रारंभ करता है और क्राइस्ट वर्तुल का अंत करते हैं।'न' से प्रारंभ करना, ताकि तुम्हारी 'हां' में कुछ अर्थ हो। भयभीत मत होना और न ही भय के कारण विश्वास कर लेना। अगर किसी दिन विश्वास करना ही हो, तो केवल स्वयं की जानकारी और प्रेम के आधार पर ही विश्वास करना- भय के कारण नहीं। इसी कारण ईसाइयत योग को विकसित न कर सके, यहूदी योग को विकसित न कर सके, इस्लाम योग को विकसित न कर सका। योग उन लोगों द्वारा विकसित हुआ जो इतने साहसी थे कि सभी
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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