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________________ आज इतना ही। प्रवचन 67 - उदासीन ब्रह्मांड में योग-सूत्र: कमान्यत्वं परिणामन्यत्वे हेतुः।। 15।। आधारभूत प्रक्रिया में छिपी अनेकरूपता द्वारा रूपांतरण में कई रूपांतरण घटित होते हैं। परिणामत्रयसंयमादतीतानागतज्ञानम्।। 16 ।। निराध, समाधि, एकाग्रता-इन तीन प्रकार के रूपांतरणों में संयम उपलब्ध करने से-अतीत और भविष्य का ज्ञान उपलब्ध, होता है। शब्दार्थप्रत्ययानामितरेतराध्यासात्।। 17/ शब्द और अर्थ और उसमें अंतर्निहित विचार, ये सब उलझाव पूर्ण स्थिति में, मन में एक साथ चले आते है। शब्द पर संयम पा लेने से पृथकता घटित होती है और तब किसी भी जीव दवारा नि:सृत ध्वनियों के अर्थ का व्यापक बोध घटित होता है। संस्कार साक्षात्करणात्पूर्वजातिज्ञानम्।। 18।। अतीतगत संस्कारबद्धताओं का आत्म--साक्षात्कार कर उन्हें पूरी तरह समझने से पूर्व-जन्मों की जानकारी मिल जाती है। फ्रीडरिक नीत्शे की 'दि गे साइंस' में एक कथा आती है:
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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