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________________ एकाग्रता तुम्हारे सामने ऐसी बातों को उदघाटित कर देती है, जो कि साधारणतया दिखाई भी नहीं देती हैं। साधारणतया तो तुम अधूरे – अधूरे ही जीते हो। तुम ऐसे जीए? चले जाते हो जैसे कि सोए हुए हो – देख रहे हो, और नहीं भी देख रहे होते हो; सुन रहे हो, और नहीं भी सुन रहे होते हो। एकाग्रता आंखों में ऊर्जा ले आती है। अगर किसी चीज को एकाग्रचित होकर देखो, तो अन्य सभी कुछ दिखाई पड़ना बंद हो जाता है, तो अचानक उस छोटी सी चीज में वह दिखाई देने लगता है जो कि वहां सदा से ही मौजूद थी और तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही थी। पूरा का पूरा विज्ञान और कुछ भी नहीं, बस कनसनट्रेशन है। किसी वैज्ञानिक को कभी काम करते हुए देखना वह अपने कार्य में पूरी तरह से एकाग्र होता है। पास्तर के विषय में एक कथा है कि एक बार जब वह अपने माइक्रोस्कोप से देख रहा था, तो वह इतना मौन और शांत था कि कोई उससे मिलने के लिए आया। आने वाले सज्जन बड़ी देर तक प्रतिक्षा करते रहे -और वह पास्तर की शांति और मौन में विध्न भी डालने से घबरा रहा था। मानो उस के आसपास कोई अलौकिकता छायी हुई थी। जब पास्तर अपनी एकाग्रता से बाहर आया, तो उसने उस आने वाले सज्जन से पछा, आप कितनी देर से प्रतीक्षा कर रहे हैं? आपने मुझे पहले बताया क्यों नहीं? वह सज्जन कहने लगे, 'सच पूछा जाए तो मैंने आपसे कई बार बात करने की कोशिश की, क्योंकि मैं जल्दी में था। मुझे कहीं और जाना था, और आपको कुछ संदेशा देना था। लेकिन आप अपने कार्य में इतने तल्लीन थे, जैसे कि आप प्रार्थना ही कर रहे हों -मैं आपकी शांति में विध्न नहीं डालना चाहता था। क्योंकि आप जिस शांत अवस्था में थे उसमें मैंने बाधा डालना उचित नहीं समझा।' पास्तर ने कहा, ' आप ठीक कह रहे हैं। काम ही मेरी प्रार्थना है। जब कभी मैं बहुत अशांत, परेशान 'चिंतित और विचारों से घिरा हुआ अनुभव करता हूं, तो मैं अपने माइक्रोस्कोप को उठाकर उसमें से देखने लगता हूं –मेरी सभी चिंताएं और परेशानी दूर हो जाती हैं, और मैं एकाग्र हो जाता हूं।' ध्यान रहे, एक वैज्ञानिक का पूरा कार्य एकाग्रता का होता है। विज्ञान योग का प्रथम चरण बन सकता है, क्योंकि एकाग्रता योग का प्रथम आंतरिक चरण है। अगर प्रत्येक वैज्ञानिक विकसित होता चला जाए और अगर वह एकाग्रता पर ही न अटक जाए, तो वह योगी बन सकता है। क्योंकि वह मार्ग पर ही होता है, वह योग की पहली शर्त, एकाग्रता को पूरा कर रहा होता है। 'जिस पर ध्यान किया जाता हो, उसी में मन को एकाग्र और सीमित कर देना धारणा है।' 'ध्यान के विषय से जुड़ी मन की अविच्छिन्नता, उसकी ओर बहता मन का सतत प्रवाह ध्यान है।'
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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