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________________ वे विपरीत नहीं हैं, वे परिपूरक हैं। ऐसा कुछ नहीं है संसार में जो कि विपरीत हो; हर चीज परिपूरक है। यह संसार अस्तित्व रखता है ताकि तुम जान सको 'उस' संसार को इसका अस्तित्व है 'उसको' जानने के लिए। भौतिक है आध्यात्मिक को जानने के लिए; नरक है स्वर्ग तक आने के लिए। यही है प्रयोजन। और यदि तुम एक से बचना चाहते हो तो तुम दोनों से बच जाओगे, क्योंकि वे एक ही चीज के दो पहलू हैं। एक बार तुम इसे समझ लेते हमे तो कोई पीड़ा नहीं रहती. तुम जानते हो कि यह एक प्रशिक्षण है, एक अनुशासन है। अनुशासन कठिन होता है। कठिन होगा ही, क्योंकि केवल तभी उससे सच्ची परिपक्वता आएगी। योग कहता है कि यह संसार एक ट्रेनिंग स्कूल की भांति है, एक पाठशाला। इससे बचो मत और इससे आगने की कोशिश मत करो। बल्कि जीओ इसे, और इसे इतनी समग्रता से जीओ कि इसे फिर से जीने को विवश न होना पड़े तुम्हें। यही है अर्थ जब हम कहते हैं कि एक बुद्ध पुरुष कभी वापस नहीं लौटता। कोई जरूरत नहीं रहती। वह गुजर गया जीवन की सभी परीक्षाओं से उसके लौटने की जरूरत न रही। तुम्हें फिर-फिर उसी जीवन में लौटने को विवश होना पड़ता है, क्योंकि तुम सीखते नहीं। बिना सीखे तुम अनुभव की पुनरुक्ति किए चले जाते हो। तुम फिर फिर दोहराते रहते हो वही अनुभव - वही क्रोध । कितनी बार कितने हजारों बार तुम क्रोधित हुए हो? जरा गिनो तो क्या सीखा तुमने इससे ? कुछ भी नहीं। फिर जब कोई स्थिति आ जाएगी तो तुम फिर से क्रोधित हो जाओगे- बिलकुल उसी तरह जैसे कि तुम्हें पहली बार क्रोध आ रहा हो ! . कितनी बार तुम पर कब्जा कर लिया है लोभ ने, कामवासना ने रूम फिर कब्जा कर लेंगी ये चीजें। और फिर तुम प्रतिक्रिया करोगे उसी पुराने ढंग से जैसे कि तुमने न सीखने की ठान ही ली हो और सीखने के लिए राजी होने का अर्थ है योगी होने के लिए राकँई होना । यदि तुमने न सीखने का ही तय कर लिया है, यदि तुम आंखों पर पट्टी ही बांधे रखना चाहते हो, यदि तुम फिर-फिर दोहराए जाना चाहते हो उसी नासमझी को तो तुम वापस फेंक दिए जाओगे। तुम वापस भेज दिए जाओगे उसी कक्षा में जब तके कि तुम उत्तीर्ण न हो जाओ। , जीवन को किसी और ढंग से मत देखना । यह एक विराट पाठशाला है, एकमात्र विश्वविद्यालय है । 'विश्वविद्यालय' शब्द आया है 'विश्व' से असल में किसी विश्वविद्यालय को स्वयं को विश्वविद्यालय नहीं कहना चाहिए। यह नाम तो बहुत विराट है। संपूर्ण विश्व ही है एकमात्र विश्वविद्यालय। लेकिन तुमने बना लिए हैं छोटे-छोटे विश्वविद्यालय और तुम सोचते हो कि जब तुम वहां से उत्तीर्ण होते हो तो तुम जान गए सब, जैसे कि तुम बन गए ज्ञानी! नहीं, ये छोटे-मोटे मनुष्य-निर्मित विश्वविद्यालय न चलेंगे। तुम्हें इस विराट विश्वविद्यालय से जीवन भर गुजरना होगा।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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