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________________ और जब अशुद्धि मिट जाती है, तो अचानक प्रकाश का उदय होता है। वह कहीं बाहर से नहीं आता; वह तुम्हारी अंतरतम सत्ता ही है अपनी शुद्धता में, अपनी निर्दोषता में, अपने कुंआरेपन में। एक आलोक का तुम में आविर्भाव होता है। हर चीज स्पष्ट हो जाती है : उलझाव भरी भीड़ खो जाती है; बोध की स्पष्टता होती है। अब तुम हर चीज को वैसा ही देखते हो जैसी कि वह है : कहीं कोई प्रक्षेपण नहीं होते, कहीं कोई कल्पना नहीं होती, कहीं कोई विकृति नहीं होती सत्य की। तुम चीजों को वैसी ही देखते हो जैसी कि वे हैं। तुम्हारी आंखें निर्मल होती हैं और तुम्हारा अंतस अस्तित्व मौन होता है। अब तुम्हारे भीतर कुछ नहीं होता, अत: तुम प्रक्षेपण नहीं कर सकते। तुम शांत-मौन द्रष्टा हो जाते हो, एक साक्षी-और वही है स्व-सत्ता की शुद्धता। '... आत्मिक प्रकाश का आविर्भाव होता है, जो कि सत्य का बोध बन जाता है।' फिर आते हैं योग के आठ चरण। बहुत धीरे-धीरे मेरी बात को समझना, क्योंकि यह पतंजलि की प्रमुख देशना है यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावगानि। योग के आठ अंग हैं : यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान और समाधि। योग के आठ चरण। यह है योग का संपूर्ण विज्ञान एक वाक्य में, एक बीज में। बहुत सी बातों की ओर संकेत है। पहले योग के प्रत्येक चरण का ठीक-ठीक अर्थ समझ लें। और खयाल रहे, पतंजलि उन्हें चरण और अंग दोनों ही कहते हैं। वे दोनों ही हैं। वे चरण हैं क्योंकि एक चला आता है दूसरे के पीछे; विकास का एक अनुक्रम है। लेकिन वे चरण ही नहीं हैं, वे योग की देह के अंग भी हैं। उनका एक आंतरिक जुड़ाव है, उनका एक जीवंत अंतर्संबंध है, यही है अंग का अर्थ। उदाहरण के लिए मेरे हाथ, मेरे पैर, मेरा हृदय-वे अलग-अलग काम नहीं करते। वे एक-दूसरे से अलग नहीं हैं, वे जुड़े हुए हैं। यदि हृदय रुक जाए तो फिर हाथ नहीं चलेगा। हर चीज जुड़ी हुई है। वे सीढ़ी के सोपानों की भांति नहीं हैं, क्योंकि सीढ़ी का तो हर डंडा अलग होता है। यदि एक डंडा टूट जाए तो पूरी सीढ़ी नहीं टूट जाती। इसलिए पतंजलि कहते हैं कि वे चरण हैं, क्योंकि उनका एक सुनिश्चित विकास है लेकिन वे अंग भी हैं, शरीर के जीवंत अंग हैं। तुम उन में से किसी एक को छोड़ नहीं सकते हो। सोपान छोड़े जा सकते हैं; अंग नहीं छोड़े जा सकते। तुम दो चरण कूद सकते हो एक ही छलांग में, तुम एक चरण छोड़ सकते हो; लेकिन अंग नहीं छोड़े जा सकते हैं, वे कोई यांत्रिक
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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