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________________ संसार एक आवश्यक अनुभव है। वह एक पाठशाला है। तुम्हें गुजरना होता है उसमें से। स्वयं को जानने के पहले स्वयं को खोना होता है। और दूसरा कोई उपाय नहीं है; वही एकमात्र मार्ग है। इस विषय में कुछ नहीं किया जा सकता। और कोई उपाय नहीं है। ही, इसीलिए। क्योंकि तुम बुद्ध हो, इसीलिए तुम दुख में हो। क्योंकि तुम बुद्ध हो, इसीलिए तुम बेहोशी में हो। तुम किसी भी दिन वापस घर आ सकते हो। यह तुम पर निर्भर है; तुम्हें निर्णय लेना है और वापस लौट आना है स्रोत तक। ईसाइयत में एक शब्द को बहुत गलत समझा गया है और वह शब्द है 'रिपेंट', पश्चाताप। जो मूल हिलू शब्द है 'रिपेंट' के लिए उसका अर्थ 'रिटर्न' है, रिपेंट नहीं। वही है एकमात्र पश्चाताप, यदि तुम लौट आओ। लेकिन उसे रिपेंट की भांति लेने से सारी बात ही खतम हो जाती है। मुसलमानों के पास इसी तरह का एक शब्द है 'तोबा'। तोबा का अर्थ होता है : लौटना। उसका अर्थ है. 'स्रोत पर लौट आना।' तोबा भी पश्चाताप जैसा लगता है; उसका अर्थ भी पश्चात्ताप नहीं है। जैनों के पास भी एक शब्द है : वे उसे कहते हैं-प्रतिक्रमण; उसका भी अर्थ है लौटना। कुल बात इतनी है कि उस स्रोत तक वापस कैसे लौट जाओ जहां से तुम आए हो। और यही है ध्यान की सारी प्रक्रिया : लौट आना, स्रोत तक वापस लौट आना और उसमें केंद्रित हो जाना। तुम बुद्ध हो, तुम बुद्ध ही थे, तुम बुद्ध ही रहोगे लेकिन बुद्धत्व की तीन अवस्थाएं होती हैं : पहली, जब कि तुमने उसे खोया नहीं होता-बुद्ध का बचपन; फिर तुम खोज करते हो उसकी-बुद्ध का यौवन; फिर पा लेते हो उसे–प्रौढ़ावस्था। प्रत्येक बच्चा बुद्ध है, प्रत्येक युवा खोजी है और प्रत्येक वृद्ध को-यदि चीजें ठीक-ठीक विकसित हों तो-पुन: बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाना चाहिए। इसीलिए हम पूरब में वृद्ध व्यक्तियों का इतना ज्यादा सम्मान करते हैं और उन्हें इतनी प्रतिष्ठा देते हैं। यदि हर बात ठीक चले तो वृद्ध का अर्थ होता है वह जो स्रोत पर लौट आया। बच्चे के पास एक निर्दोषता होती है, लेकिन उसे उसका होश नहीं होता, क्योंकि वह उसके पास जन्म से ही होती है। कैसे वह उसके प्रति सजग हो सकता है? उसे अनभव चाहिए विपरीत का; केवल तभी वह सजग होगा। और तब वह फिर से उसमें लौट चलने की अभीप्सा से भर उठेगा : हर कोई फिर से बच्चा हो जाना चाहता है, उतना निर्दोष हो जाना चाहता है। वह अनुभव इतना अदभुत था, अपूर्व था। लेकिन उस समय वह उतना अपूर्व न था! जरा पीछे लौटो अपने बचपन में। उसे केवल याद मत करो-उसे जीओ फिर से। वह एक पीड़ा थी। कोई बचपन सुखी नहीं होता : प्रत्येक बच्चा बड़ा हो जाना चाहता है-जवान, बड़ा, शक्तिशाली–प्रत्येक बच्चा। क्योंकि प्रत्येक बच्चा स्वयं को असहाय अनुभव करता है। वह नहीं जानता कि उसके पास क्या है। कैसे जान सकते हो तुम, यदि तुमने उसे खोया ही न हो? उसे निर्दोषता खोनी होगी. उसे चालाक संसार में जीना होगा; उसे नरक में गहरे उतरना होगा। वह साधु था, लेकिन वह साधुता कोई उपलब्धि न थी। वह केवल प्रकृति की भेंट थी।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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