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________________ उपवास में, यदि तुमने कभी उपवास किया है तो तुमने अनुभव किया होगा कि रात तुम सो नहीं सकते। तुम बार-बार करवट बदलते हो। कोई बात चूक रही है। शरीर की ऊर्जा पूरी तरह मुक्त हो जाती है-कुछ पचाने के लिए नहीं है। मुक्त हो गई ऊर्जा सारे शरीर में घूमती है। अब वह पेट में ही केंद्रित नहीं रहती। असल में वह ऊर्जा उपलब्ध होती है, इसलिए तुम्हारा मन चलता रहता है; तुम सजग रहते हो। नींद कठिन हो जाती है। उपवास एक ढंग है सजगता निर्मित करने का। यदि तुम लंबे समय तक उपवास करते हो, तो तुम सजगता की एक निश्चित गुणवत्ता पा लोगे जिसे भोजन लेते हुए पाना कठिन है। वह बिना उपवास के भी मिल सकती है, लेकिन उसमें ज्यादा समय लगेगा। उपवास एक छोटा और सुगम उपाय है। लेकिन कहीं भूल हो गई। ऐसा सदा ही होता है सोए हुए लोगों के साथ। तुम उन्हें कोई विधि देते हो : वे उसे ही पकड़ कर बैठ जाते हैं। वे भूल जाते हैं लक्ष्य को-विधि ही लक्ष्य बन जाती है, साधन साध्य बन जाता है। अब हजारों जैन मुनि हैं जो निरंतर उपवास कर रहे हैं और कुछ हाथ लगता नहीं। मैं देश भर में घूमता रहा हूं तरह-तरह के लोगों से मिलता रहा हूं। मैंने हजारों जैन मुनियों से पूछा है, 'आप उपवास क्यों करते हैं?' वे कहते हैं, क्योंकि इससे शरीर की शुद्धि होती है।' बिलकुल बेकार की बात है। होती होगी शरीर की शुद्धि, लेकिन सवाल यह नहीं है। कभी-कभी स्वास्थ्य के लिए अच्छा हो सकता है उपवास-सदा ही नहीं। यदि तुम्हारे शरीर में बहुत ज्यादा चरबी इकट्ठी हो गई है, तो उपवास सहायक होगा उसका शोधन करने में; यह चरबी कम करता है। यदि तुमने वर्षों तक बहुत ज्यादा भोजन किया है और तम्हारे शरीर में बहत से विषैले तत्व जमा हो गए हैं, तो उपवास मदद देता है उन्हें शोधित करने में। लेकिन यह बात दूसरी है, धर्म से इसका कुछ लेना-देना नहीं है। यह प्राकृतिक चिकित्सा है-धर्म नहीं। लेकिन जैन मुनि को शरीर-शुद्धि करनी ही क्यों पड़े? वह बीमार नहीं है। उसके शरीर में कोई जहर नहीं है। असल में वह बिलकुल भूल ही गया है लक्ष्य को। लक्ष्य तो था सजगता का। अब वह साधनों में ही लगा है, साधनों का ही प्रयोग कर रहा है, लक्ष्य को नहीं जान रहा है। वह केवल पीड़ित हो रहा है। इसलिए उपवास अब उपवास नहीं है, वह केवल भूखा रहना है। और ऐसा बहुत बार हुआ है-करीब-करीब सदा ही ऐसा होता है क्योंकि साधन दिए जाते हैं सोए हुए लोगों को। वे नहीं समझ सकते लक्ष्य को, लक्ष्य बहुत दूर है। वे साधनों से चिपके रहते हैं। तुमने देखे होंगे चित्र, या अगर तुमने चित्र नहीं देखे तो तुम जा सकते हो बनारस और देख सकते हो काटो की शय्या पर लेटे हुए लोगों को। यह प्राचीनतम ढंग था सजगता निर्मित करने का, बहुत पुराना ढंग, सब से प्राचीन। यह सजगता बढ़ाने के लिए है। किसी बहादुरी से इसका कुछ भी संबंध नहीं है। दूसरों पर प्रभाव जमाने से इसका कोई संबंध नहीं है। इस व्यक्ति को बनारस की सड़कों पर नहीं
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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