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________________ बुद्ध ने अपना महल छोड़ दिया। उनका एक पुराना सेवक छन्ना, जो कि उनका बहुत विश्वासपात्र था, उन्हें शहर से बाहर छोड़ने आया, राजधानी से बाहर छोड़ने आया। उसे मालूम नहीं था कि वे कहं। जा रहे हैं। फिर राज्य के बाहर आकर बुद्ध ने कहा, 'मेरे आभूषण ले जाओ, मेरे कीमती कपड़े ले जाओ।' उन्होंने अपने बाल सुंदर घुंघराले बाल काट डाले और उन्होंने कहा, 'यह सब कुछ ले जाओ। यह सब दे देना मेरी पत्नी को में संसार छोड़ कर जा रहा हूँ।' छन्ना रोने लगा, और उसने कहा, 'क्या कर रहे हैं आप? आप जवान हैं। आप संसार को उतना नहीं जानते, जितना मैं जानता हूं। प्रत्येक व्यक्ति महल पाना चाहता है, प्रत्येक व्यक्ति सम्राट होना चाहता है। और आपके पास साम्राज्य है और आप छोड़ कर जा रहे हैं इसे। मेरी बात को गलत न समझें, लेकिन मुझे लगता है कि आप नासमझी कर रहे हैं। मैं का हूं आपके पिता से अधिक मेरी उम्र है। मेरी सुनें, और वापस लौट चलें। आप पागल हुए हैं क्या? आप क्या कर रहे हैं?" बुद्ध ने कहा, 'उन्ना, क्या तुम्हें नहीं दिखता कि वह महल जलती लपटों के सिवाय और कुछ भी नहीं है ? और क्या तुम्हें नहीं दिखता कि पूरा साम्राज्य आग में जल रहा है? मैं इसे छोड़ कर नहीं जा रहा हूं मैं बच कर भाग रहा हूं में इसका त्याग नहीं कर रहा हूं मैं तो केवल अपनी जान बचा रहा हूं बस इतना ही । ' उन्ना ने पीछे मुड़ कर देखा। कहीं कोई आग नहीं लगी थी सारा राज्य सन्नाटे में डूबा था। आधी रात का समय था, पूर्णिमा की रात थी, हर कोई गहरी नींद में सोया था. कहां लगी है आगर नींद में तुम उसे नहीं देख सकते, थोड़ा-थोड़ा जब तुम जागने लगते हो तभी तुम्हें यह आग दिखाई पड़ती है। तो मुझ से मत पूछो कि क्यों तुम अभी भी भटके हुए हो। यही तुमने चाहा है। तुम भटके हुए रहना चाहते हो, इसीलिए तुम भटके हुए हो। यदि तुम ऐसा नहीं चाहते, तो कोई समस्या नहीं है, अभी इसी क्षण तुम इसके बाहर आ सकते हो। लेकिन कोई और तुम्हें इसके बाहर नहीं ला सकता है। मैं तुम्हें इसके बाहर नहीं ला सकता हूं। और यह अच्छा है कि कोई तुम्हें इसके बाहर नहीं ला सकता, इसीलिए तुम्हारी स्वतंत्रता अक्षुण्ण है। तुम चलाए रखना चाहते हो इस खेल को तो चलाए रखो । यदि तुम नहीं चलाए रखना चाहते यह खेल, तो इसके बाहर छलांग लगा दो। कोई तुम्हें रोक नहीं रहा है, कोई तुम्हारा रास्ता नहीं बंद कर रहा है। जिस क्षण तुम निर्णय ले लेते हो, जिस क्षण तुम्हारा निर्णय पक जाता है, जिस क्षण तुम्हारी सजगता पूरी होती है और तुम इसकी व्यर्थता को देख लेते हो, उसी क्षण तुम उसके बाहर आ जाओगेबिलकुल उसी क्षण एक भी क्षण और रुकने की जरूरत नहीं होगी। सवाल समझ का नहीं है, सवाल है समझ का सवाल है बोध का । ,
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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