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________________ ऐसा कैसे है कि मैं अभी भी भटक इस प्रश्न का उत्तर तुम्हें कोई दूसरा नहीं दे सकता। तुम भटके हुए हो, तुम्हें ही पता होगा। तुम जरूर लुका-छिपी का खेल खेल रहे होओगे। मैं जानता हूं कि तुम जानते हो। तुम भटके रहना चाहते हो, इसीलिए तुम भटके हुए हो। जिस क्षण तुम निर्णय करो कि भटकना नहीं है, तो कोई बाधा नहीं दे रहा है तुम्हें; कोई तुम्हारा रास्ता नहीं रोक रहा है। लेकिन तुम और थोड़ी देर सपना देखना चाहते हो। तुम्हारी कुल प्रार्थना यह है, 'हे परमात्मा, मुझे बुद्धत्व मिले, लेकिन एकदम अभी नहीं।' यह है तुम्हारी प्रार्थना 'मैं जाग जाऊं, लेकिन थोड़ी देर बाद।' ऐसा हुआ लंका में: एक बड़ा रहस्यदर्शी संत मरणशय्या पर था; उसके लाखों शिष्य थे। यह जान कर कि वह मरणशय्या पर है, वे सब इकट्ठे हो गए। अपना पूरा जीवन और वह लंबा जीवन जीया, करीब-करीब सौ वर्ष जीया-वह बदधत्व के विषय में समझाता रहा था। जिस दिन उसे विदा होना था, वह अपनी कुटिया से बाहर आया अंतिम दर्शन देने के लिए और उसने कहा, 'अब मैं जा रहा हूं। क्या कोई मेरे साथ चलने के लिए तैयार है? आज मैं कुछ समझाऊंगा नहीं; आज मैं तैयार तुम्हें अपने साथ ले चलने के लिए। यदि कोई तैयार है, तो वह खड़ा हो जाए।' लोग एक-दूसरे की तरफ देखने लगे. हजारों लोग इकट्ठे थे, लेकिन कोई खड़ा न हुआ। गुरु ने थोड़ी देर प्रतीक्षा की और फिर उसने कहा, 'देर हो रही है और मझे जाना है। क्या मैं समझ लं कि, पूरा जीवन व्यर्थ गया तुम से बुद्धत्व की बातें करते हुए? और अब मैं तुम्हें बुद्धत्व देने के लिए तैयार हूं। तुम्हें कुछ प्रयास करने की जरूरत नहीं है; मैं तुम्हें अपने साथ ले जा सकता हूं। कोई तैयार एक आदमी आधे-आधे मन से खड़ा हुआ और उसने कहा, 'थोड़ा ठहरें! कृपया मुझे बता दें कि बुद्धत्व कैसे मिलता है, क्योंकि आप तो जा रहे हैं और मैं अभी तैयार नहीं हूं आपके साथ आने के लिए। संसार में बहुत कुछ करना बाकी है। मेरा बेटा अभी-अभी यूनिवर्सिटी में दाखिल हुआ है, मेरी बेटी की शादी होनी है, मेरी पत्नी बीमार है और उसकी देखभाल करने वाला कोई चाहिए.। जब सब ठीक हो जाएगा, तो मैं भी आऊंगा। तो कृपया, मझे विधि भर दे दीजिए।' गुरु हंसा और उसने कहा, 'जिंदगी भर मैं विधियां ही तो देता रहा है।' क्यों तुम अपने को छिपाते हो विधियों के पीछे? लोग सदा विधि चाहते हैं, क्योंकि विधि की आड़ में तुम आसानी से स्थगित कर सकते हो, क्योंकि विधि को तो 'करना' होगा-समय लगेगा करने में। और वह तुम पर निर्भर करता है-करना या न करना, या आधे-आधे मन से करना, या स्थगित कर देना।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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