SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हा,कठिन है समझाना। सारे समाधान कठिन हैं, क्योंकि पहली तो बात, समस्याएं ही झूठी हैं। कैसे किसी झूठी समस्या को हल किया जाए? तुम बेतुकी बात पूछ रहे हो, तो समझाना कठिन हो जाता है। तो यह ठीक है सभी समस्याओं को समझाना कठिन है। असल में जब तुम समझते हो, तो कहीं कोई समस्या नहीं रहती, जब तुम नहीं समझते, तो समस्या होती है। तो समस्या सुलझाई नहीं जा सकती है, और मैं यहां तुम्हारी समस्याओं को सुलझाने के लिए नहीं हूं; मैं तुम्हारी मूढ़ताओं में बिलकुल भागीदार नहीं हूं। मैं यहां तुम्हें समझ देने की कोशिश कर रहा हूं-तुम्हारी समस्याओं को समझने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। वे सुलझ नहीं सकतीं, क्योंकि वे बिलकुल अनर्गल हैं। तुम्हारी सारी समस्याएं ऐसी हैं जैसे किसी व्यक्ति को तेज बुखार चढ़ा हो –एक सौ सात डिग्री बुखार-और वह अंट-शंट सवाल पूछ रहा हो। वह कहता है, 'यह कुर्सी आकाश में क्यों उड़ रही है?' अब कैसे समझाओ इसे? लेकिन उसका बुखार उतारा जा सकता है, वही एकमात्र उपाय है। वही मैं कर रहा हूं मेरा सारा प्रयास यही है कि तुम्हारा बुखार थोड़ा नीचे उतर आए। जब तुम समझ जाते हो, जब बुखार थोड़ा नीचे उतर आता है, फिर कुर्सी नहीं उड़ती। तब तुम स्वयं पर हंसने लगते हो कि कितने मूढ़ थे तुम। कठिन है, करीब-करीब असंभव ही है समझाना, क्योंकि पहली तो बात जो भी तुम पूछते हो, वह बेतुका ही होगा। तुम सम्यक प्रश्न, ठीक प्रश्न नहीं पूछ सकते, क्योंकि यदि तुम ठीक प्रश्न पूछ सकते होते, तो फिर पूछने की कोई जरूरत नहीं रह जाती। सम्यक प्रश्न सदा अपने में सम्यक उत्तर लिए रहता है क्योंकि असली बात है 'सम्यक' होने की। यदि तुम ठीक प्रश्न पूछ सकते हो, तो तुमने समझ ही ली है बात। लेकिन फिर भी मैं कोशिश करूंगा; मैं कोशिश करूंगा तुम्हारे बुखार को थोड़ा नीचे उतारने की। वह कोई समझाना नहीं है। 'कभी आप कहते हैं कि गुरु और शिष्य के लिए, दो प्रेमियों के लिए अंतस से अंतस का मिलन संभव है। और कभी आप कहते हैं कि हम एकदम अकेले हैं और किसी के भी साथ होना असंभव है।' दोनों बातें सच हैं। हम एकदम अकेले हैं और साथ होना असंभव है-यह बात बिलकुल सच है। और इसी तरह दूसरी बात भी बिलकुल सच है कि दो प्रेमियों का अंतस से अंतस का मिलन हो सकता है; गुरु और शिष्य का अंतस से अंतस का मिलन हो सकता है। विरोधाभास लगता है, क्योंकि तुम्हारे पास कोई अनुभव नहीं है उसका। जब दो प्रेमी मिलते हैं, तो वे दो प्रेमी नहीं रहते-केवल प्रेम होता है। वे दोनों मिट चुके होते हैं, वे दोनों खो चुके होते हैं, क्योंकि यदि प्रेमी मौजूद हैं तो प्रेम मौजूद नहीं हो सकता। जब दो प्रेमी मिलते हैं, तो वे दो नहीं रहते और वे प्रेमी नहीं रहते : केवल प्रेम ही रहता है। वे दोनों नदी के दो किनारों जैसे होते हैं असल में नदी बहती है और दोनों किनारों को छूती है। नदी के बिना किनारे दूर-दूर
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy