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________________ योग का पांचवां अंग है प्रत्याहार - स्रोत पर लौट आना यह मन की उस क्षमता की पुनर्स्थापना है जिससे बाह्य विषय जनित विक्षेपों से मुक्त हो इंद्रियां वश में हो जाती हैं। जब तक तुम बाहरी चीजों से होने वाले चित्त - विक्षेपों से नहीं छूटते, तुम भीतर नहीं जा सकते, क्योंकि वे चीजें तुम्हें बार-बार बुलाती रहेंगी। यह ऐसा ही है जैसे तुम ध्यान कर रहे हो, लेकिन टेलीफोन भी तुमने ध्यान कक्ष में रख लिया है। वह बार-बार बजता है, तो कैसे तुम ध्यान कर सकते हो? तुम्हें अपना टेलीफोन हटा देना है। और यह कोई एक टेलीफोन की बात नहीं है। तुम्हारे आस-पास लाखों-लाखों चीजें चल रही हैंलाखों टेलीफोन बज रहे हैं लगातार जब तुम ध्यान करने की कोशिश कर रहे हो। तुम्हारे मन का एक हिस्सा कहता है, 'क्या कर रहे हो तुम यहां? यह समय बाजार जाने का है, क्योंकि यही समय है सब से धनी ग्राहक के आने का । क्यों तुम यहां खाली बैठे अपना समय खराब कर रहे हो?' मन का दूसरा हिस्सा कुछ और ही कहता है और मन में हजारों बातें चलती रहती हैं। वे सब बातें तुम्हारा ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कर रही हैं। यदि यही चलता रहा, तो प्रत्याहार संभव नहीं है। कैसे तुम जा पाओगे भीतर? तुम्हें परिधि के लगाव, बाहर के भटकाव छोड़ने होते हैं-केवल तभी लौटना संभव होता - है। 'योग का पांचवां अंग है प्रत्याहार - स्रोत पर लौट आना। यह मन की उस क्षमता की पुनर्स्थापना है जिससे बाह्य विषय जनित विक्षेपों से मुक्त अविश्वश्निय में हो जाती हैं । ' 'बाह्य विषय जनित विक्षेपों से मुक्त हो...।' कैसे कोई मुक्त हो सकता है विक्षेपों से? क्या तुम प्रतिज्ञा कर सकते हो कि मेरा धन में जो रस है उसे मैं छोड़ता हूं, या 'मेरा स्त्रियों में जो रस है, मेरा पुरुषों में जो रस है उसे मैं छोड़ता हूं?' मात्र प्रतिज्ञा करने से यह संभव नहीं है। असल में प्रतिज्ञा से उलटा ही होगा। यदि तुम कहते हो, 'मैं स्त्रियों में रस लेना छोड़ता हूं, तो तुम्हारा मन और ज्यादा भर जाएगा स्त्रियों के चित्रों से; तुम और ज्यादा कल्पना करने लगोगे। असल में, यदि तुम जबरदस्ती छोड़ते हो, तो तुम और ज्यादा मुश्किल में पड़ जाओगे। बहुत से लोग ऐसे ही छोड़ने की कोशिश करते रहे हैं। जब भी वृद्ध संन्यासी मुझसे मिलने आते हैं तो वे हमेशा कहते हैं, कामवासना का क्या करें? वह मन में चलती ही रहती है। और वह पहले से अधिक चलती है। और हमने तो सब छोड़ दिया है, तो अब क्या करें?' जितना ज्यादा तुम छोड़ते हो बिना समझ के जबरदस्ती, उतना ज्यादा तुम मुसीबत में पड़ोगे। समझ चाहिए - संकल्प नहीं । संकल्प अहंकार का हिस्सा है। ,
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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