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________________ ध्यान, समाधि क्या हैं? यदि तुम प्रत्याहार में ही अपने लक्ष्य तक पहुंच गए होते, अपने अंतरतम केंद्र तक पहुंच गए होते, जान लिया होता उस अंतर-प्रकाश को, तो फिर धारणा का, ध्यान का, समाधि का क्या अर्थ है? फिर करने के लिए बचता ही क्या है? नहीं, पतंजलि का यह अर्थ नहीं हो सकता। और सूत्र स्पष्ट है। पतंजलि कहते हैं 'आवरण का विसर्जन'-प्रकाश की उपलब्धि नहीं कहते। ये दोनों अलग बातें हैं। आवरण का हटना एक नकारात्मक उपलब्धि है, वह प्रकाश पाने की संभावना निर्मित करती है। लेकिन आवरण का हटना अपने आप में प्रकाश की उपलब्धि नहीं है। और करने को बहुत सारी चीजें शेष हैं। उदाहरण के लिए, तुम आंखें बंद किए जीते रहे; तुम्हारी पलकों ने सूरज की रोशनी पर पड़े आवरण का काम किया। लाखों-लाखों जन्मों के बाद तुम अपनी आंखें खोलते हो : अब आवरण नहीं है, लेकिन तुम प्रकाश न देख पाओगे-तुम्हारी आंखें अंधेरे की अभ्यस्त हो गई हैं। सूर्य तुम्हारे सामने मौजूद होगा और कोई आवरण न होगा, लेकिन तम उसे देख न पाओगे। आवरण हट गया है, लेकिन अंधकार का लंबा अभ्यास तुम्हारी आंखों का हिस्सा बन चुका है। पलकों का स्थूल आवरण अब वहां नहीं है, लेकिन अंधकार का एक सूक्ष्म आवरण अभी भी मौजूद है। और यदि तुम बहुत जन्म जीए हो अंधकार में, तो सूर्य तुम्हारी आंखों के लिए बहुत ज्यादा चमकदार होगा। तुम्हारी आंखें इतनी कमजोर होंगी कि वे इतनी तेज रोशनी बरदाश्त न कर पाएंगी। और जब रोशनी तुम्हारी बरदाश्त करने की क्षमता से ज्यादा होती है, तो वह अंधकार बन जाती है। कभी थोड़ी देर सूरज की तरफ देखने की कोशिश करना : तुम पाओगे तुम्हारी आंखों में अंधेरा छा रहा है। यदि तुम बहुत ज्यादा कोशिश करो देखने की, तो तुम अंधे भी हो सकते हो। बहुत ज्यादा रोशनी भी अंधेरा बन सकती है। और तुम नहीं जानते कि तुम कितने जन्मों-जन्मों अंधकार में जीते रहे हो। तुमने कोई प्रकाश जाना नहीं; सूर्य की एक किरण भी तुम्हारे अंतस में नहीं उतरी। अंधकार ही तुम्हारा एकमात्र अनुभव रहा है। प्रकाश इतना अपरिचित है कि उसे पहचानना असंभव होगा। आवरण के हटने मात्र से ही तुम उसे नहीं पहचान पाओगे। पतंजलि यह भलीभांति जानते हैं। इसीलिए वे सूत्र इस भांति प्रतिपादित करते हैं 'तत: क्षीयते प्रकाशावरणम् –फिर उस आवरण का विसर्जन हो जाता है जो प्रकाश को ढंके हए है।' लेकिन प्रकाश की उपलब्धि नहीं हुई है। यह एक नकारात्मक उपलब्धि है। एक दूसरे ढंग से इसे समझने की कोशिश करें। तुम्हें अगर कोई औषधि मदद कर सकती है, बीमारी दूर हो सकती है औषधि से। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं होता कि तुमने स्वास्थ्य पा लिया है। बीमारी छुट सकती है, अब शरीर में कोई बीमारी नहीं है, लेकिन स्वास्थ्य अभी भी नहीं मिला है।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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