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________________ यही तो अर्थ है धार्मिक होने का. अब वह संघर्ष में नहीं होता; अब उसके पास अपने कोई निजी लक्ष्य नहीं होते, अब वह अस्तित्व के साथ बहता है; अब उसका वही लक्ष्य है जो समय का लक्ष्य है-अगर समग्र का कोई लक्ष्य है तो। अब उसकी कोई निजी नियति नहीं है, समग्र अस्तित्व की नियति ही उसकी नियति है। वह बहता है धारा के साथ वह धारा के विपरीत नहीं लड़ता है। जब तुम सच में बहते हो तो तुम मिट जाते हो, क्योंकि अहंकार केवल तभी बच सकता है जब वह लड़ता है। अहंकार केवल तभी बच सकता है जब कोई प्रतिरोध होता है। अहंकार केवल तभी बच सकता है जब तुम्हारे पास कोई निजी लक्ष्य होता है समग्र के विरुद्ध । इसे समझने की कोशिश करना कि अहंकार कैसे बना रहता है। लोग आते हैं मेरे पास और वे कहते हैं, 'हम अहंकार छोड़ देना चाहते हैं।' और मैं उनसे कहता हूं ' अगर तुम अहंकार को छोड़ना चाहते हो तो तुम नहीं छोड़ सकते उसे, क्योंकि तुम कौन हो छोड़ने वाले? यह कौन है जो कह रहा है कि मैं अहंकार छोड़ देना चाहता हूं? यह भी अहंकार है। अब तुम अपने अहंकार से ही लड़ रहे हो।' तो तुम दिखावा कर सकते हो विनम्र होने का, तुम जबरदस्ती विनम्रता थोप सकते हो अपने ऊपर, लेकिन अहंकार मौजूद रहेगा। तुम पहले सम्राट थे और अब तुम भिखारी हो सकते हो, लेकिन फिर भी अहंकार बना रहेगा। पहले वह सम्राट की भांति था; अब वह विनम्र भिखारी की भांति रहेगा। तुम्हारे चलने-फिरने का ढंग, तुम्हारे देखने का ढंग उसे प्रकट करेगा। जिस ढंग से तुम चलोगे तुम अहंकार की घोषणा करोगे। जिस ढंग से तुम बात करोगे - तुम अहंकार की घोषणा करोगे। तुम कह सकते हो, मैं संसार का सबसे विनम्र व्यक्ति हूं। उससे कुछ अंतर नहीं पड़ता। पहले तुम सब से महान व्यक्ति थे संसार के, अब तुम कितने विन्रम व्यक्ति हो – लेकिन तुम तो असाधारण । तुम मौजूद हो ! अगर तुम अहंकार के साथ लड़ना शुरू कर देते हो तो तुम और सूक्ष्म अहंकार बना लोगे, जो कि और भी खतरनाक है, क्योंकि वह बहुत सूक्ष्म अहंकार होगा - पवित्र अहंकार होगा। वह धार्मिक होने का दावा करेगा। पहले वह कम से कम 'इस संसार का था, अब वह 'उस' संसार का होगा और भी शुद्ध, शक्तिशाली, सूक्ष्म और उसकी पकड़ ज्यादा खतरनाक होगी, और उससे बाहर आना ज्यादा कठिन होगा। तुम छोटे खतरे से बड़े खतरे में कूद गए हो। तुम जाल में और उलझ गए हो। तुम और बड़े कारागृह में प्रवेश कर गए हो। 'प्राणायाम', जिसे निरंतर ही श्वास नियंत्रण' की भांति समझा गया है, वह नियंत्रण बिलकुल नहीं है। प्राणायाम समस्त अस्तित्व के साथ सहजता से होने का, सहजता से जीने का एक ढंग है। वह कोई नियंत्रण नहीं है। सारे नियंत्रण अहंकार से आते हैं; वरना कौन करेगा नियंत्रण? अहंकार नियंत्रण करता है। यदि तुम इसे समझ लो तो अहंकार तिरोहित हो जाएगा उसे छोड़ने की कोई जरूरत नहीं। , ―――― तुम भ्रम को झूठ को नहीं छोड़ सकते; तुम केवल सत्य को छोड़ सकते हो और अहंकार सत्य नहीं है। तुम माया को नहीं छोड़ सकते। भ्रम नहीं छोड़े जा सकते, क्योंकि पहली तो बात, वे होते ही नहीं ।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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