SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 393
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत-क्षीयते प्रकाशावरणम्। फिर उस आवरण का विसर्जन हो जाता है जो प्रकाश को ढंके हुए है। चार चरण पूरे हो चुके हैं। पांचवां चरण–प्रत्याहार–प्रथम चार (बाहरी योग) के और अंतिम तीन (भीतरी योग) के बीच सेतु के रूप में काम करता है। पांचवां चरण, जो बाहरी योग का हिस्सा है, वह सेतु के रूप में भी काम करता है। प्रत्याहार का अर्थ होता है : 'स्रोत तक लौट आना केंद्र तक जाना नहीं, बस स्रोत तक लौट आना। लौटने की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। अब उर्जा कहीं नहीं जा रहीं है; उर्जा का अब विषय-वस्तुओं में रस नहीं रह गया है-ऊर्जा मुड़ चुकी है; बाहर से हट चुकी है; वह मुड़ रही है भीतर। इसे ही जीसस कनवर्सन कहते हैं-वापस लौट आना। साधारणतया, ऊर्जा बाहर की तरफ गति करती है। तुम देखना चाहते हो, तुम सूंघना चाहते हो, तुम छूना चाहते हो, तुम अनुभव करना चाहते हो : ऊर्जा बाहर जा रही होती है। तुम बिलकुल ही भूल चुके हो कि कौन तुम्हारे भीतर छिपा है। तुम आंखें, कान, नाक, हाथ बन गए हो और तुम भूल गए हो कि कौन इन इंद्रियों के पीछे छिपा है; कौन देखता है तुम्हारी आंखों से। तुम आंखें नहीं हो। ठीक है, तुम्हारे पास आंखें हैं, लेकिन तुम आंखें नहीं हो। आंखें सिर्फ झरोखे हैं। कौन खड़ा है उन झरोखों के पीछे? कौन देखता है उन आंखों से? मैं तुम्हें देखता हूं; आंखें नहीं देख रही हैं तुम्हें। आंखें अपने आप नहीं देख सकतीं। जब तक मैं खिड़की के पास खड़ा होकर बाहर न देखू आंखें अपने आप नहीं देख सकतीं! ऐसा बहुत बार तुमको भी अनुभव होता है : तुम कोई किताब पढ़ रहे हो, तुम कई पन्ने पढ़ जाते हो, और अचानक तुम्हें लगता है कि तुमने एक भी शब्द नहीं पढ़ा है! आंखें पढ़ रही थीं, लेकिन तुम वहां नहीं थे। आंखें घूमती रहीं एक शब्द से दूसरे शब्द तक, एक वाक्य से दूसरे वाक्य तक, एक पैराग्राफ से दूसरे पैराग्राफ तक, एक पृष्ठ से दूसरे पृष्ठ तक, लेकिन तुम मौजूद नहीं थे। अचानक तुम्हें होश आता है कि 'केवल आंखें ही वहां थीं; मैं नहीं था।' तुम गहन पीड़ा में, दुख में हो : तब आंखें खुली होती हैं, लेकिन तुम देखते नहीं; वे बहुत ज्यादा भरी होती हैं आंसुओ से। या फिर तुम बहुत प्रसन्न होते हो, इतने प्रसन्न होते हो कि तुम फिक्र नहीं करते : अचानक तुम्हारी आंखें इतनी खुशी से भर जाती हैं कि वे देख नहीं सकतीं। तुम बाजार में हो और कोई तुम से कह देता है, 'तुम्हारे घर में आग लगी है।' तुम भागते हो। तुम सड़क पर बहुत से लोगों को देखते हो। कुछ लोग कहते हैं, 'जय राम जी। कहां जा रहे हो तुम? क्यों
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy