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________________ फिर समस्त इंद्रियों पर पूर्ण वश हो जाता है। सा. एस. लेविस कहता है, 'मन्ष्य उखड़ा जा रहा है।' बी. एफ. स्किनर कहता है, 'अच्छा छुटकारा है।' शेक्सपियर का हेमलेट मनुष्य के बारे में कहता है, 'कितना ईश्वर जैसा है!' पावलोव कहता है, 'कितना कुत्ते जैसा है!' समस्या यह है कि मनुष्य दोनों है-ईश्वर जैसा भी है और कुत्ते जैसा भी है। नष्य केवल एक होता-कत्ते जैसा होता या ईश्वर जैसा होता तो कोई समस्या न होती। समस्या इसलिए है क्योंकि मनुष्य एक विरोधाभास है : परिधि पर वह कुत्ते से भी बदतर है; केंद्र पर वह परम महिमावान है, किसी ईश्वर से ज्यादा महिमावान है। यदि मनुष्य केवल 53 यदि तुम मनुष्य को सिर्फ बाहर से ही देखते हो, तो तुम नहीं कह सकते कि यदि मनुष्य उखड़ा जा रहा है तो इसमें कुछ बुरा है-'ठीक है, अच्छा छुटकारा है।' स्किनर ठीक कहता है। यह पृथ्वी बेहतर होगी, कम से कम ज्यादा शांत होगी। प्रकृति खुश होगी।' लेकिन यदि तुम मनुष्य को गहरे में देखो, उसकी असीम गहराई में, तो बिना मनुष्य के पृथ्वी शांत हो सकती है, लेकिन वह शाति मरघट की शाति होगी। उसमें कोई संगीत न होगा। उसमें कोई गहराई न होगी। फूल होंगे, लेकिन अब वे सुंदर न होंगे। कौन अनुभव करेगा उनका सौंदर्य? कौन देखेगा उनका सौंदर्य? पक्षी चहचहाते रहेंगे, लेकिन कौन उनके चहचहाने को गीत कहेगा, मधुर कहेगा? वृक्ष हरे होंगे, लेकिन फिर भी वे हरे नहीं होंगे, क्योंकि उस हरियाली को पहचानने के लिए उससे पुलकित होने वाला मानव-हृदय चाहिए। मनुष्य के साथ ही जीवन का रस खो जाएगा। मनुष्य के साथ ही प्रार्थना खो जाएगी। मनुष्य के साथ ही परमात्मा खो जाएगा। पृथ्वी होगी, लेकिन परमात्मा से रहित होगी। मौन होगा, लेकिन वह मरघट का सन्नाटा होगा। वह मौन हृदय के साथ धड़कता हुआ न होगा। सारी पृथ्वी पर विस्तार होगा उसका, लेकिन उसमें गहराई का अभाव होगा और बिना गहराई का मौन कोई मौन नहीं होता। संसार क्षुद्र हो जाएगा, उथला हो जाएगा, उसमें गहराई न होगी, महिमा न होगी। मनुष्य के साथ महिमा आती है, क्योंकि मनुष्य के पीछे गहरे में परमात्मा छिपा है। मनुष्य मंदिरों के बिना नहीं रह सकता है, चर्चा, मस्जिदों के बिना नहीं रह सकता है, क्योंकि मनुष्य स्वयं एक मंदिर है। वह बनाता रहता है मंदिर-नास्तिक भी मंदिर बनाते हैं। जरा क्रेमलिन के मंदिर को देखो! क्रेमलिन या लेनिन के मकबरे के पास से कम्युनिस्ट उतनी ही श्रद्धा से भरे गुजरते हैं जैसे कि कोई आस्तिक अपने परमात्मा के प्रति श्रद्धा- भाव से भरा हुआ मनुष्य नहीं रह सकता परमात्मा के बिना, क्योंकि गहरे में वह स्वयं परमात्मा है।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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