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________________ नहीं, तुम मुक्त नहीं हो गए हो। प्रतिक्रिया, विद्रोह कोई क्रांति नहीं है। तुम दूसरी अति पर जा सकते हो, लेकिन तुम उसी ढांचे में बने रहते हो। वे सफाई के पीछे पागल थे; तुम गंदे होने के पीछे पागल हो। और यदि मुझ से पूछते हो, अगर एक ही रास्ता हो. व्यक्ति को अति चुननी ही पड़ती हो तो मैं स्वच्छता की अति चुनूंगा, कम से कम वह स्वच्छ तो है। लेकिन मैं सदा संतुलन के पक्ष में हूं। और कोई दूसरा तुम्हारे लिए अनुशासन नहीं दे सकता। तुम्हें अपने शरीर को, अपने संतुलन को अनुभव करना होगा क्योंकि अस्वच्छता, गंदगी एक बोझ बन जाती है तुम्हारे शरीर पर, तुम्हारे चित्त पर। स्वच्छता किसी दूसरे के लिए या समाज के लिए नहीं है, वह तुम्हारे ही लिए है-हलका अनुभव करने के लिए है, प्रसन्न अनुभव करने के लिए है, शुद्ध और साफ अनुभव करने के लिए है। एक अच्छा स्नान तुम्हें पंख दे देता है। एक अच्छा स्नान, और तुम थोड़ी दिव्यता पा लेते हो, पृथ्वी का हिस्सा नहीं रहते; तुम थोड़ी उड़ान भर सकते हो। अच्छा स्नान जरूरी है। और कोई दूसरा तुम्हारे लिए नियम नहीं बना सकता; अपने शरीर को तुम्हें ही समझना पड़ेगा। कई बार तुम बीमार होते हो और स्नान की कोई जरूरत नहीं होती, क्योंकि स्नान झंझट पैदा कर सकता है; तो स्नान से बंध मत जाना। कई बार स्थिति ऐसी नहीं होती कि तुम स्थान कर सकी; तो इसको लेकर पागल मत हो जाना-अपराध मत अनुभव करना। इसमें ऐसा कुछ नहीं है कि अपराध अनुभव करो; स्नान करना कोई पुण्य नहीं है, स्नान न करना कोई पाप नहीं है। अधिक से अधिक यह स्वास्थ्यप्रद है। और तुम्हें अपने शरीर का खयाल रखना है; शरीर मंदिर है ईश्वर का। उसे स्वच्छ होना चाहिए; उसे सुंदर होना चाहिए। तुम्हें उसमें रहना है; तुम्हें उसके साथ रहना है। यह कई ढंग से तुम्हें प्रभावित करेगा। एक स्वच्छ शरीर में, एक स्वस्थ मंदिर में एक स्वच्छ मन के घटने की और होने की संभावना ज्यादा होती है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि ऐसा जरूरी है। मैं इतना ही कह रहा हूं कि संभावना है-एक स्वच्छ शरीर में ज्यादा संभावना है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि अस्वच्छ शरीर में कोई संभावना नहीं है स्वच्छ मन के लिए, संभावना है, लेकिन यह बात थोड़ी कठिन होगी, प्रकृति के विरुदध होगी। ध्यान आंतरिक स्नान है चेतना का, और स्नान शरीर के लिए ध्यान है। सातवां प्रश्न : आप निरंतर लाओत्स पर ही क्यों नहीं बोलते रहते?
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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