SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप हमें ऐसा कुछ क्यों नहीं दे देते जो हमें तुरंत इसी पल बिना किसी पीड़ा के मिटा दे बजाय इसके कि हम इस अंतहीन मालूम होती पीड़ा से गुजरें? मैं वही दे रहा हूं तुम को, लेकिन तुम सुनते ही नहीं। सवाल इसका नहीं है कि मैं वह नहीं दे रहा हूं तुम्हें मैं तुम्हें अंतिम जहर दे रहा हूं। वह तुम्हें तत्क्षण मार देगा, लेकिन तुम मुझे सुनते ही नहीं। तुम सोचते रहते हो कि कुछ गलत है, तुम सोचते रहते हो कि तुम गलत हो, और कभी-कभी तुम्हारी इच्छा भी होती है कि कैसे इस झंझट से छूटें? कैसे इसके पार जाएं? लेकिन तुम्हारे बहुत न्यस्त स्वार्थ हैं। तुम सोचते जरूर हो, 'कैसे इसके पार जाएं?' लेकिन तुम चाहते नहीं हो पार जाना। जहर तो मैं दे सकता हूं तुमको। जो मैं तुम्हें सिखा रहा हूं वह मरने की कला ही है। लेकिन तुम्हें मैं जबरदस्ती जहर नहीं दे सकता हूं; वरना अदालत है - मैं मुश्किल में पडूगा। तो मैं बस उसे तुम्हारे सामने रख देता हूं; फिर लेना तो तुम्हें ही है और वहीं तुम चूक जाते हो। तुम चाहते हो कि जबरदस्ती कोई तुम्हें दे दे। तुम चाहते हो कि कोई और तुम्हें पिला दे । और यह मृत्यु किसी और के द्वारा जबरदस्ती नहीं लाई जा सकती है। जिस मृत्यु की मैं बात कर रहा हूं वह तुम्हारी इच्छा से होनी चाहिए, तुम्हारी मर्जी से होनी चाहिए। तुम्हें पूरे हृदय से उसका स्वागत करना होगा। मैं तुम पर जबरदस्ती थोप नहीं सकता। यदि तुम तैयार हो, तो वह घटेगी, यदि तुम तैयार नहीं हो, तो वह नहीं घटेगी। मेरी तरफ से मैं सदा तैयार हूं। यदि तुम तैयार हो मरने के लिए तो मैं तैयार हूं तुम्हारी मदद करने के लिए। लेकिन तुम तैयार नहीं हो मरने के लिए भीतर तुम सोचते रहते हो कि इस मृत्यु के बाद भी 'तुम' बचोगे। तुम ध्यान करते हो, लेकिन तुम इस ढंग से ध्यान करते हो कि तुम इसके बाद बच सको. तुम इसका उपयोग एक विधि की भांति करते हो। तुम्हारा मूल केंद्र अछूता रहता है; तुम सदा सचेत रहते हो इसके लिए। लेकिन यदि तुम इसे मृत्यु की भांति करो - ध्यान मृत्यु की भांति करो - तो तुम्हें मिटना होगा। कोई और ही प्रकट होगा इससे, 'तुम' नहीं। तुम तो मिट जाओगे। एक नई अंतस सता जन्म लेगी तुम से ताजी, युवा, कुंआरी तुम उसे पहचान भी न पाओगे। एक अंतराल आ जाएगा; तुम मिट गए पूरी तरह कुछ नया उदित हुआ और उन दोनों का एक-दूसरे से कोई संबंध नहीं होता। - बहुत कठिन है इसे समझना। वह नर जीवन तुम में ही छिपा है, लेकिन वह खोल जिसने उसे ढंका हुआ है, बहुत कठोर है। तुम बीज की भांति हो भीतर गहरे में सब छिपा है, पूरा वृक्ष छिपा : है—फूल और फल, और सब है। लेकिन बीज का खोल बहुत कड़ा है। खोल राज़ी नहीं है मिटने के लिए यदि खोल मिटे तो वृक्ष पैदा हो
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy