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________________ वह करीब-करीब गुस्से में आ गया मना करने में। वह आदमी जिसने उसे निमंत्रित किया था, हैरत में पड़ गया कि वह इतने क्रोध में क्यों आ गया। उसने कहा, 'लेकिन आप इतने नाराज क्यों हो रहे हैं? बीथोवन के संगीत की गणना तो संसार के महानतम संगीतो में होती है।' लेनिन ने कहा, 'होती होगी, लेकिन सारा अच्छा संगीत क्रांति के विरुद्ध है, क्योंकि वह तुम्हें इतना गहरा संतोष देता है, वह तुम्हें शांत कर देता है। मैं सब संगीत का विरोधी हूं। यदि संगीत फैलता है संसार में, तो क्रांतिया मिट जाएंगी। उसकी बात में बल है। लेनिन सभी राजनीतिज्ञों के बारे में एक सच कह रहा है। वे नहीं पसंद करते की संसार में महान संगीत हो; वे नहीं पसंद करेंगे कि संसार में श्रेष्ठ काव्य हो; वे नहीं पसंद करेंगे कि संसार में गहरे ध्यानी हों; वे नहीं पसंद करेंगे कि संसार में सुखी, आनंदमग्न व्यक्ति हों, नहीं-क्योंकि फिर क्रांतियों का क्या होगा? युद्धों का क्या होगा? उन सब मूढ़ताओं का क्या होगा जो संसार में चलती रहती हैं ई जरूरत है कि लोग सदा अशांत रहें, केवल तभी वे राजनेताओं की याद करते हैं। यदि लोग संतुष्ट हैं, तृप्त हैं, प्रसन्न हैं, तो कौन परवाह करता है राजधानियों की? लोग भूल जाएंगे उन्हें। वे नाचेंगे, और संगीत सुनेंगे, और ध्यान करेंगे। वे क्यों चिंता करेंगे राष्ट्रपति फोर्ड की और 'इसकी' और 'उसकी? उन बातों में कुछ रस नहीं रहता। लेकिन लोग जब संतुष्ट नहीं होते, शांत नहीं होते, तो वे दूसरों के व्यक्तित्व को सहारा दिए चले जाते हैं, क्योंकि यही एकमात्र उपाय है जिससे वे दूसरों का सहारा पा सकते हैं अपने व्यक्तित्व के सहारे के लिए। तो इसे स्मरण रखना सेल्फ-कांशसनेस-जोर है 'सेल्फ' पर एक रोग है, गहन रोग है। इससे छुटकारा पाना है। सेल्फ-कांशसनेस-जोर है 'कांशसनेस' पर, चैतन्य पर-तब यह संसार की सबसे स्वस्थ, सबसे पवित्र बात है, क्योंकि यह संबंध रखती है स्वस्थ व्यक्तियों से, जिन्होंने अपना केंद्र पा लिया है। वे बोधपूर्ण हैं, सजग हैं। वे रिक्त नहीं हैं, वे तृप्त हैं। सातवां प्रश्न: कैसे कोई श्वास को देखे जब कि वह दिखाई नहीं पड़ती बल्कि अनुभव होती है? जरूरी नहीं है कि देखने का अर्थ आंखों से देखना ही हो-वह अनुभूति भी हो सकती है। असल में यह अनुभूति ही है, क्योंकि कैसे तुम अपनी श्वास को देख सकते हो गु: तुम उसे अनुभव करते हो, उसके स्पर्श को अनुभव करते हो। जब श्वास अपने मार्ग से गुजरती है, तब तुम उसका स्पर्श अनुभव करते हो।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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