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________________ क्या घटता है जब कोई समग्र होता है? प्रेम और घृणा, दोनों होते हैं और जब प्रेम और घृणा दोनों होते हैं, तो वे एक-दूसरे को काट देते हैं, और एक तीसरी गुणवत्ता पैदा होती है, जिसे बुद्ध ने करुणा कहा है। करुणा के विपरीत कुछ नहीं है । या तुम कह सकते हो, 'जब घृणा वाला हिस्सा नहीं होता, केवल तभी प्रेम संपूर्ण होता है। लेकिन तब प्रेम मध्य में होता है जो कुछ भी तुम इसे कहना चाहो, सवाल उसका नहीं है, लेकिन एक गहन संतुलन घटता है। विपरीतताए एक दूसरे को काट देती हैं; वे बराबर शक्ति की होती हैं। वे एक-दूसरे को काट देती हैं और तुम संतुलन में रहते हो संतुलन है समग्रता तब तुम अपनी समग्रता में संबंधित होते हो। जब बुद्ध में करुणा पैदा होती है, तो कुछ पीछे नहीं छूट जाता। वे समग्र रूप से करुणा में बहते हैं। जब जीसस प्रेम करते हैं, तो वे समग्र रूप से प्रेमपूर्ण होते हैं। लेकिन जब तुम प्रेम करते हो, तब तुम्हारा एक हिस्सा घृणा करने के लिए तैयार हो रहा होता है जब तुम घृणा करते हो, तब तुम्हारा एक हिस्सा प्रेम करने के लिए तैयार हो रहा होता है। तुम बंटे हुए हो एक बंटा हुआ व्यक्तित्व सदा - अतियों में डोलता रहता है। समग्रता आती है अनबंटे मन से, अखंड मन से: तुम सीधे खड़े होते होंमध्य में, पूरे संतुलित - न तो इधर झुकते हो न उधर। उस अकंप क्षण में तुम समग्रता को उपलब्ध होते हो। - - उपनिषदों के पास इसके लिए एक खास शब्द है वे इसे कहते हैं, 'नेति नेति ।' वे कहते हैं, न यह, न वह'–विपरीतताओं खड़े होओ। विपरीतताओ को परिपूरक बना लेना। उन दोनों को एक-दूसरे को संतुलित करने देना। तुम चुनावरहित रहना। इसीलिए कृष्णमूर्ति निरंतर एक शब्द पर जोर दिए जाते हैं- चुनावरहित सजगता क्योंकि जैसे ही तुम चुनते हो, तुम अति को चुन लेते हो। - - सारे चुनाव अति के चुनाव हैं। तुम किसी न किसी चीज के विरुद्ध कुछ चुनते हो जब भी तुम कहते हो, 'यह सुंदर है', तुमने किसी चीज की असुंदर की तरह निंदा कर दी होती है। अन्यथा कैसे कह सकते हो तुम कि 'यह सुंदर है ? इस कथन में कि यह सुंदर है, यह कथन छिपा होता है कि कुछ असुंदर है, कुरूप है। जिस क्षण तुम कहते हो, 'यह आदमी संत है, तुमने किसी की पापी के रूप में निंदा कर दी होती है। यदि पापी खो जाएं तो संत भी खो जाएंगे। संत कैसे हो सकते हैं यदि पापी न हों? संतो के होने के लिए पापी जरूरी हैं। पापी भी खो जाएंगे यदि संत न रहें। कौन कहेगा उनको पापी ? कैसे निर्णय करोगे तुम कि कोई पापी है? एक बेहतर मनुष्यता में न कोई संत होगा, न कोई पापी होगा, क्योंकि पूरी बात संतुलित होगी गहरे रूप में। पापी और पुण्यात्मा एक-दूसरे के विपरीत हैं; वे एक साथ अस्तित्व रखते हैं।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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