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________________ यदि तुम देखते रह सको बिना कुछ किए ही... और करना सब से बड़ा मोह है मन का। मन कहता है, 'कुछ न कुछ करो; अन्यथा चीजें कैसे बदलेंगी?' मन कहता है. 'केवल प्रयास से ही, केवल कुछ करने से ही कुछ बदल सकता है। और यह बात तर्कपूर्ण, आकर्षक, भरोसे की मालूम पड़ती है-और यह बिलकुल गलत है। तुम कुछ नहीं कर सकते। तुम्ही हो समस्या। और जितना अधिक तुम कुछ करते हो, उतना ज्यादा तुम अहंकार अनुभव करते हो; 'मैं' मजबूत हो जाता है; अहंकार शक्तिशाली हो जाता कुछ करो मत, केवल देखो। देखने से अहंकार तिरोहित होता है, करने से अहंकार मजबूत होता है। बस साक्षी बने रहो। स्वीकार करो इसको-बिलकुल मत लड़ना इससे। यदि उलझाव है तो गलत क्या है? बस एक बादलों भरी शाम, बादलों से घिरा आकाश-बुरा क्या है? आनंदित होओ। बहुत ज्यादा सूर्य भी अच्छा नहीं; कई बार जरूरत होती है बादलों की। क्या बुरा है इसमें? सुबह धुंध से भरी है और तुम धुंधला-धुंधला अनुभव करते हो। क्या बुरा है इसमें? धुंध का भी आनंद मनाओ। जैसी भी स्थिति हो, तुम देखो, प्रतीक्षा करो, और आनंदित होओ। स्वीकार करो। यदि तुम स्वीकार कर लेते हो इसे, तो वही स्वीकार रूपांतरित कर जाता है, वही स्वीकार क्रांति कर देता है। जल्दी ही तुम देखोगे कि तुम बैठे हो वहां, नदी खो गई-केवल कीचड़ ही नहीं, बल्कि पूरी नदी खो गई। अब कोई धुंध वहां नहीं है, बादल तिरोहित हो चुके, और एक खुला आकाश, एक विराट आकाश उपलब्ध है। लेकिन धैर्य की जरूरत पड़ेगी। इसलिए यदि तुम जोर देते हो कि 'अब मुझे बताएं, मैं क्या करूं?' तो मैं कहूंगा, 'धैर्य रखो।' यदि तुम जोर देते हो कि 'मैं कहा जाऊं?' तो मैं तुम्हें कहूंगा, 'और निकट आओ मेरे।' छठवां प्रश्न: रोज कई बार स्नान करने और कपड़े बदलने की ब्राह्मणों की आदत के बारे में आप कुछ कहेंगे? क्या वर्तमान संन्यासी के लिए यह उचित होगा? ब्राह्मण पागल हो गए हैं। वे पीड़ित हैं नियमों से, रूढ़ियों से, विक्षिप्तता से। साफ रहना
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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