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________________ पतंजलि योग के विषय में जो भी कहा जा सकता है वह सब कहते जाते हैं। इसीलिए मैं कहता हं कि वे योग के अल्फा और ओमेगा हैं-आदि और अंत हैं। उन्होंने एक भी बात नहीं छोड़ी है। पतंजलि के योग-सूत्रों में कुछ भी जोड़ा-घटाया नहीं जा सकता है। केवल दो ही व्यक्ति हैं संसार में जिन्होंने अकेले पूरा विज्ञान निर्मित किया है। एक है पश्चिम में अरस्तू जिसने तर्कशास्त्र का पूरा विज्ञान निर्मित किया-अकेले ही-किसी का भी सहयोग नहीं रहा। और इन दो हजार वर्षों में कोई चीज उसमें जुड़ी नहीं, संशोधित नहीं हुई; वह वैसा का वैसा है। वह इतना परिपूर्ण है। दूसरे हैं पतंजलि, जिन्होंने योग का पूरा विज्ञान निर्मित किया-जो कई गुना, लाख गुना ज्यादा विराट है तर्कशास्त्र से-अकेले ही पूरा विज्ञान निर्मित किया! और उसमें कुछ भी जोड़ाघटाया नहीं जा सकता। वह बिलकुल वैसा ही है। और मैं इसकी कोई संभावना नहीं देखता कि आगे भी कभी उसमें कुछ जोड़ा जा सकता है। योग-सूत्र में पूरा विज्ञान मौजूद है-संपूर्ण, अपनी पराकाष्ठा पर। आज इतना ही। प्रवचन 58 - ध्यान : अज्ञात सागर का आमंत्रण प्रश्न-सार: 1-कई बार आपके प्रवचनों के दौरान मैं 'छ' खुली नहीं रख पाता और एकाग्र नहीं हो पाता, और पता नहीं कहां चला जाता हूं, और एक झटके से वापस लौटता हूं। कोई स्मृति नहीं रहती कि मैं कहां रहा! क्या मैं कहीं गहरे उतर रहा हूं या बस नींद में जा रहा हूं? 2-आपने कहा कि पतंजलि का योग-सूत्र एक संपूर्ण शास्त्र है। लेकिन इसमें कहीं भी चुंबन के योग क्यों नहीं आती है? 3-अपनी अनुभूतियों में कैसे कोई समग्र हो सकता है, बिना अतियों में गए? 4-क्या आप मुस्कुराते है-जब हम आपकी सभा में गंभीर और लंबे चेहरे लिए बैठे होते हैं?
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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