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________________ जिददी होते हैं। डाक्टर के पास जाने के लिए भी वे राजी नहीं होते। वे कहते हैं, 'क्यों? किसलिए? क्या मैं पागल हूं? कोई जरूरत नहीं है, मैं बिलकुल ठीक हूं। तुम जा सकते हो।' मुल्ला नसरुद्दीन एक मनस्विद के पास गया और उसने कहा, 'अब कुछ करना पड़ेगा-चीजें मेरे वश के बाहर हो गई हैं। मेरी पत्नी पूरी तरह पागल हो गई है, और वह सोचती है कि वह रेफ्रिजरेटर बन गई है। वह मनस्विद भी थोड़ा चौंका। उसके सामने भी ऐसी कोई समस्या अभी तक नहीं आई थी। उसने कहा, 'यह तो गंभीर बात है। जरा विस्तार से बताओ मुझे।' उसने कहा, 'बताने के लिए ज्यादा कुछ है नहीं। वह रेफ्रिजरेटर बन गई है, वह मानती है कि वह रेफ्रिजरेटर है।' मनस्विद ने कहा, 'लेकिन यदि यह केवल मानना ही है तो इसमें कुछ बुरा नहीं। निर्दोष बात है। मानने दो उसे। वह कोई और उपद्रव तो नहीं खड़ा कर रही है?' नसरुद्दीन ने कहा, 'उपद्रव? मैं बिलकुल सो ही नहीं पाता, क्योंकि रात भर वह मुंह खोल कर सोती है-और रेफ्रिजरेटर की रोशनी के कारण मैं सो नहीं सकता।' अब कौन पागल है? पागल आदमी कभी नहीं सोचते कि वे पागल हैं। स्वभाव, यह सौभाग्य की बात है कि तुम सोच सकते हो, 'मैं पागल तुम्हारे भीतर का बुद्धिमान हिस्सा है जो इसे देख रहा है। हर कोई पागल है। जितनी जल्दी तुम देख लो इसे, उतना शुभ है। 'अब तो मैं कोई श्रद्धा भी अनुभव नहीं करता।' अच्छा है। क्योंकि जब तुम थोड़े सजग होते हो तो श्रद्धा अनुभव करना कठिन हो जाता है। बहुत सी अवस्थाएं हैं। एक अवस्था है जब लोग संदेह अनुभव करते हैं। फिर वे संदेह का दमन करते हैं क्योंकि श्रद्धा से बहुत आशा बंधती है. 'समर्पण करो, और तुम सब कुछ पाओगे।' मैं तुम्हें आशा दिए जाता हं 'समर्पण करो, और तुम्हारा बदधत्व निश्चित है।' श्रदधा बड़ी आशापूर्ण मालुम पड़ती है। तुम्हें लोभ पकड़ता है। तुम कहते हो, 'ठीक है, तो हम श्रद्धा करेंगे और समर्पण करेंगे।' लेकिन यह श्रद्धा नहीं है, यह लोभ है-और भीतर गहरे में तुम संदेह छिपाए रहते हो। तुम भीतर-भीतर संदेह करते रहते हो। तुम सजग रहते हो कि श्रद्धा ठीक है, लेकिन बहुत ज्यादा श्रद्धा भी नहीं करनी है। क्योंकि कौन जाने, यह आदमी क्या चाहता हो, मूर्ख ही बना रहा हो, धोखा दे रहा हो! तो तुम श्रद्धा करते हो, लेकिन तम आधे-आधे मन से श्रद्धा करते हो। और कहीं भीतर संदेह बना ही रहता है। जब तुम ध्यान करते हो, जब तुम्हारी समझ थोड़ी बढ़ती है, जब तुम मुझे निरंतर सुनते हो, और मैं कई दिशाओं से, कई आयामों से तुम पर चोट करता रहता हूं तो मैं तुम्हारे अस्तित्व में कई छिद्र
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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