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________________ और जब तुम इसे उपलब्ध तुम इसे उपलब्ध हो जाते हो तो तुम नहीं चाहते हिलाना-डुलना, क्योंकि जितना ज्यादा, तुम हिलते डुलते हो उतना ज्यादा तुम चूकोगे इसे यह एक सुनिश्चित अवस्था में घटित होता है। यदि तुम हिलते-डुलते हो, तो तुम इससे हट जाते हो; तुम इसे डावाडोल कर देते हो। और सुख की स्वाभाविक इच्छा होती है प्रत्येक व्यक्ति की और योग सर्वाधिक स्वाभाविक है - यह - सबकी स्वाभाविक इच्छा है सुख में होने की, आराम में होने की और जब भी तुम आराम में नहीं होते तो तुम बदलना चाहोगे उस स्थिति को यह स्वाभाविक है। तो सदा अपने भीतर की सहजस्वाभाविक अनुभूति को सुनना। वह करीब-करीब हमेशा सही होती है। — प्रयत्न की शिथिलता और असीम पर ध्यान से आसन सिद्ध होता है। सुंदर शब्द हैं, बड़े सूचक और सांकेतिक हैं. प्रयत्न शैथिल्य प्रयास की शिथिलता पहली बात है, यदि तुम आसन की सिद्धि चाहते हो, जिसे पतंजलि आसन कहते हैं सुखद और स्थिर । शरीर इतनी स्थिरता में होता है कि कोई चीज हिलती-डुलती नहीं शरीर इतने आराम में होता है कि उसे हिलाने-डुलाने की इच्छा बिलकुल खो जाती है; तुम आराम की अनुभूति से आनंदित होने लगते हो, शरीर एकदम अकंप हो जाता है। और तुम्हारी भाव - दशा के बदलने से शरीर बदलता है; शरीर के बदलने से तुम्हारी भाव - दशा बदल है। क्या तुमने कभी ध्यान दिया! तुम किसी थिएटर में जाते हो कोई फिल्म देखने. क्या तुमने ध्यान दिया कि कितनी बार तुम अपने बैठने का ढंग बदलते हो? क्या तुमने कोशिश की इन बातों के आपसी संबंध को देखने की? अगर पर्दे पर कोई बहुत सनसनीखेज सीन चल रहा होता है, तो तुम नहीं बैठे रह सकते कुर्सी पर आराम से टिके हुए तुम सीधे बैठ जाते हो; तुम्हारी रीढ़ सीधी हो जाती है। अगर कुछ उबाऊ बात चल रही होती है और तुम उत्तेजित नहीं होते, तो तुम शिथिल रहते हो। अगर कुछ बहुत ही अप्रीतिकर सीन चल रहा होता है, तो तुम बार-बार अपना बैठने का ढंग बदलते हो। अगर सच में कोई सुंदर बात वहां चल रही होती है, तो तुम्हारी आख का झपकना तक रुक जाता है; उतनी गति भी बाधा हो जाती है। कोई गति नहीं होती, तुम बिलकुल स्थिर हो जाते हो, अकंप, जैसे कि शरीर हो ही नहीं। तो आसन की सिद्धि में पहली बात है. प्रयास की शिथिलता, जो इस संसार की सर्वाधिक कठिन बातों में से एक है। वैसे सरलतम है, लेकिन फिर भी कठिनतम हो गई है। यदि तुम उसे समझ लेते हो तो बहुत सरल है, यदि तुम नहीं समझते तो बहुत कठिन है। यह किसी अभ्यास की बात नहीं है; यह समझ की बात है।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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