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________________ चाहते हो, जड़ चट्टान की भांति, तब कुछ बनने की जरूरत नहीं। तुम मृत्यु की मांग कर रहे हो : तुम जीवन के प्रेम में नहीं हो; तुमने जीवन को जीया नहीं, जाना नहीं। जीयो जीवन को, स्वीकार करो जीवन को, वर्तमान क्षण के प्रति सजग रहो, और सारे रहस्य तुम्हारे सामने तुम्हारी सजगता द्वारा ही आविष्कृत हो जाएंगे। दूसरा कोई उपाय नहीं है। तुम कहीं से नहीं आए हो और कहीं नहीं जा रहे हो। तुम सदा मध्य में हो; तुम सदा मार्ग पर हो। असल में मैं कहना चाहूंगा कि तुम ही मार्ग हो, क्योंकि मार्ग तुम से कहीं अलग अस्तित्व नहीं रखता। जब मैं कहता हूं कि तुम विकसित हो रहे हो, तो गलत मत समझ लेना मेरी बात-तुम सोच सकते हो कि तुम अलग हो और तुम विकसित हो रहे हो। नहीं; तुम्ही हो विकास, तुम्ही हो विकास की प्रक्रिया, तुम से अलग कुछ भी नहीं है। फिर अचानक, इस होने की सारी प्रक्रिया में, होने के इस तेज भंवर में, तुम पा लेते हो वह शून्यतातुम्हारे अपने भीतर। और वह अंतराकाश बहुत अदभुत है। वह अंतराकाश वही है जिसे हम परम आशीष कहते हैं। पांचवां प्रश्न : आपने मुझे पूरी तरह भ्रमित और सुस्त बना दिया है मैं पागल जैसा हो गया हूं। अब तो मैं श्रद्धा भी अनुभव नहीं करता अब मुझे बताएं कि मैं क्या करूं? कहां जाऊं? यह प्रश्न है 'स्वभाव' का। तुम्हारा भी जरूर सामना हुआ होगा उसके पागलपन से। अब वह स्वयं भी इसके प्रति सजग हुआ है-यह एक सुंदर घड़ी है। यदि तुम भ्रमित हो सकते हो, तो इससे इतना ही प्रकट होता है कि तुम बुद्धिमान हो। केवल एक जड़बुद्धि व्यक्ति भ्रमित नहीं हो सकता; केवल एक मूढ़ व्यक्ति भ्रमित नहीं हो सकता। यदि तुम्हारे पास थोड़ी बुद्धि है तो तुम भ्रमित हो सकते हो। एक बुद्धिमान व्यक्ति ही भ्रमित हो सकता है। इसलिए भ्रमित होने से डरो मत। जरूर तुम्हारे पास थोड़ी सी बुद्धि है। अब बुद्धि बढ़ रही है, परिपक्व हो रही है। भ्रांति सदा से थी, लेकिन तुम सजग न थे, इसलिए तुम उसे जानते नहीं थे। अब तुम सजग हो और तुम जान सकते हो। यह बिलकुल ऐसा ही है. तुम एक अंधेरे कमरे में रहते हो। वहां जाले लगे हैं, चूहे
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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