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________________ अब विज्ञापन करने वाले भलीभांति जानते हैं कि जीभ के साथ धोखाधड़ी की जा सकती है, नाक के साथ धोखाधड़ी की जा सकती है। खोज चलती है भोजन के और वे कोई मालिक नहीं हैं। शायद तुम्हें पता भी न होगा, संसार संबंध में और वे कहते हैं कि यदि तुम्हारी नाक बिलकुल बंद कर दी जाए, और तुम्हारी आंखें बंद कर दी जाएं, और फिर तुम्हें प्याज दे दिया जाए खाने के लिए, तो मैं बहु सेव के बीच कोई भेद नहीं कर सकते तुम नहीं बता सकते कि तुम क्या खा रहे हो तुम प्याज और यदि नाक पूरी तरह बंद हो। क्योंकि आधा स्वाद तो आता है गंध से, आधा निर्णय होता है नाक के द्वारा, और आधा निर्णय होता है जीभ के द्वारा और ये दोनों निर्णायक हो जाते हैं। अब वे जानते हैं - कि आइसक्रीम पौष्टिक आहार है या नहीं सवाल इसका नहीं है, लेकिन एक फ्लेवर होना चाहिए, कुछ केमिकल्स होने चाहिए जो जीभ को स्वाद दें। लेकिन वे शरीर की जरूरत नहीं हैं। आदमी उलझ गया है - भैंसों की अपेक्षा कहीं ज्यादा उलझ गया है। तुम भैंसों को राजी नहीं कर सकते आइसक्रीम खाने के लिए। कभी प्रयोग करना। तो स्वाभाविक भोजन... और जब मैं कहता हूं स्वाभाविक तो मेरा मतलब है जिसकी जरूरत है तुम्हारे शरीर को एक शेर की जरूरत अलग है उसे जानवरों को मार कर खाना है। यदि तुम शेर का मांस खाते हो, तो तुम हिंसक हो जाओगे, फिर वह हिंसा कहां निकलेगी ? तुम्हें मानव - समाज में रहना है न कि किसी जंगल में तब तुम्हें हिंसा को दबाना पड़ेगा। तब एक दुष्चक्र शुरू हो जाता है। जब तुम हिंसा को दबाते हो, तो क्या होता है? जब तुम क्रोधित, हिंसक अनुभव करते हो तो तुम्हारी ग्रंथियां जहर छोड़ देती हैं शरीर में, क्योंकि वही जहर ऐसी अवस्था निर्मित कर देता है कि तुम सचमुच हिंसक हो सकते हो और किसी को मार सकते हो। ऊर्जा आ जाती है तुम्हारे हाथों में, ऊर्जा आ जाती है तुम्हारे दांतो में ये दो स्थल हैं जिनके द्वारा जानवर हिंसा करते हैं। मनुष्य आया है जानवरों से। तो जब तुम क्रोधित होते हो, तब ऊर्जा बहती है - वह हाथों में और दांतो में, जबड़ों में जाती है। लेकिन तुम रहते हो मनुष्य-समाज में और क्रोधित होना सदा लाभकारी नहीं होता। तुम रहते हो सभ्य समाज में, और तुम जानवर की भांति व्यवहार नहीं कर सकते। यदि तुम जानवर की भांति व्यवहार करते हो, तो तुम्हें उसका बहुत ज्यादा मूल्य चुकाना पड़ेगा और तुम तैयार नहीं हो उतना मूल्य चुकाने के लिए तो तुम क्या करोगे? तुम क्रोध को दबा लेते हो हाथों में तुम क्रोध को दबा लेते हो अपने दांतो में - तुम एक झूठी मुस्कुराहट ऊपर से ओढ़ लेते हो। और तुम्हारे दांतो में, मसूढ़ों में क्रोध इकट्ठा होता रहता है। मैंने स्वाभाविक मसूढ़ों वाले लोग बहुत कम देखे हैं। लोगों के मसूढे स्वाभाविक नहीं होते - अवरुद्ध होते हैं, सख्त होते हैं, क्योंकि बहुत ज्यादा क्रोध इकट्ठा होता है उनमें यदि तुम किसी व्यक्ति के मसूढे दबाओ, तो क्रोध प्रकट हो सकता है हाथ असुंदर हो जाते हैं वे खो देते हैं सुडौलता, वे खो देते हैं लोच, क्योंकि बहुत ज्यादा क्रोध इकट्ठा हो जाता है वहां जो लोग गहरी मालिश का काम करते रहे हैं, वे जानते हैं कि जब हाथों को दबाया जाता है, मालिश की जाती है हाथों की, तो व्यक्ति क्रोधित
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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