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________________ फिर वह भी मरा; और दूसरा रबाई आया। नगर के लोग इकट्ठे हुए मुसीबत की घड़ी थी, कोई महामारी फैली थी, और लोगों ने कहा, 'आप प्रार्थना करने जंगल में जाएं; ऐसा ही सदा से होता आया है। पुराने रबाई सदा जंगल जाते रहे हैं।' वह बैठा हुआ था अपनी आरामकुर्सी पर। उसने कहा, 'वहां जाने की क्या जरूरत है? परमात्मा यहीं से सुन सकता है। और मैं कुछ जानता नहीं।' तो उसने नजरें उठाई आकाश की ओर और कहा, 'सुनो, ठीक स्थान मैं जानता नहीं, मुझे क्रिया-कांड के बारे में कुछ पता नहीं-मैं तो प्रार्थना भी कुछ नहीं जानता। मुझे तो बस यह कहानी मालूम है कि पहला रबाई कैसे वहाँ जाता था, दूसरा कैसे जाता था, तीसरा कैसे जाता था, चौथा कैसे जाता था... मैं आपसे यही कहानी कह दूंगा-और मैं जानता हूं कि कहानियां आपको प्रिय हैं। कृपया कहानी सुन लें और गांव को मुसीबत से बचा लें।' और उसने पुराने रबाइयों की सारी कहानी कह दी। और ऐसा कहा जाता है, परमात्मा को वह कहानी इतनी पसंद आई कि नगर की रक्षा हो गई। उसे जरूर कहानियां बहुत प्रिय हैं; वह स्वयं कहानियां गढ़ता रहता है। उसे प्रिय होनी ही चाहिए कहानियां। उसी ने सबसे पहले यह जीवन की पूरी कहानी गढ़ी। हां, जीवन एक कहानी है, अस्तित्व के शाश्वत मौन में एक छोटी सी कहानी, और मनुष्य है कहानी गढ़ने वाला प्राणी। जब तक कि तुम परमात्मा न हो जाओ तुम्हें कहानियां पसंद आएंगी : तुम्हें भाएगी राम और सीता की कहानियां, महाभारत की कहानियां; तुम्हें भाएगी यूनान की, रोम की, चीन की कहानियां। लाखों-लाखों कहानियां हैं-सभी सुंदर हैं। यदि तुम तर्क को बीच में न लाओ, तो वे बहुत से भीतरी द्वारों को खोल सकती हैं, वे बहुत से आंतरिक रहस्यों को उदघाटित कर सकती हैं। यदि तुम तर्क करने लगते हो, तो द्वार बंद हो जाते हैं। तब वह मंदिर तुम्हारे लिए नहीं है। प्रेम करो कहानियों से। जब तुम उन्हें प्रेम करते हो, तो वे अपने रहस्यों को खोल देती हैं। और बहुत कुछ छिपा है उनमें : मनुष्यता ने जो भी खोजा है, वह सब छिपा है प्रतीक-कथाओं में। इसीलिए जीसस, बुद्ध कहानियों में बोलते हैं। उन सब को कहानियां प्रिय रही अंतिम प्रश्न : आपने कहा कि गुरु को कई बार शिष्य पर क्रोधित भी होना पड़ता है और उस अवस्था में वह अभिनय ही कर रहा होता है तो क्या वह तब भी अभिनय कर रहा होता है जब वह हंस कर मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखता है?
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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