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________________ पहली बार पूरब आए तो वे विश्वास ही न कर सके इस बात पर, क्योंकि गांव इतने गरीब थे। लोगों के पास ढंग के घर न थे, झोपड़ियां ही थीं। केवल कहने भर को ही उन्हें घर कह सकते थे लेकिन फिर भी उनके गांवों में सुंदर मंदिर थे। उनके घरों की दीवारें पक्की न थीं, बांसों की दीवारें थीं, लेकिन परमात्मा के लिए सुंदर संगमरमर की दीवारें, संगमरमर के फर्श । छोटे-छोटे मंदिर, लेकिन फिर भी सुंदर। उन्हें भरोसा नहीं आता था - जब लोग इतनी गरीबी में जी रहे हैं, तो फायदा क्या है ऐसे सुंदर-सुंदर मंदिर बनाने कार पूरब में हमने सदा अनुपयोगिता में विश्वास किया है कोई रह सकता है घर में, वह एक उपयोगिता की चीज है। परमात्मा नहीं रहता मंदिर में; वह मंदिर के बिना रह सकता है। यदि मंदिर न होता, तो संसार में कुछ कमी न होती संसार का कुछ लाभ नहीं हुआ है मंदिर से लाभ होता है फैक्टरी से, अस्पताल से स्कूल से मंदिर से नहीं मंदिर तो एकदम अनुपयोगी है। इसलिए जब कम्युनिस्टों ने रूस पर अधिकार जमा लिया, तो उन्होंने सारे मंदिर, सारे चर्च मिटा दिए—उन्होंने बदल दिया उन्हें फैक्टरियों में, स्कूलों में, अस्पतालों में, इसमें - उसमें – क्योंकि कम्युनिस्ट विश्वास करता है उपयोगिता में वह फूलों में विश्वास नहीं करता है वह काव्य में विश्वास नहीं करता है, वह विश्वास करता है गद्य में, तर्क में। मैं विश्वास करता हूं काव्य में मैं तर्क की जरा भी परवाह नहीं करता; मैं एकदम अतर्क्स हूं। और मैंने जीवन के सौंदर्य को जाना है अतर्क्स के द्वारा तर्कातीत के द्वारा हृदय द्वारा मैंने देखा है जीवन के मंदिर को। और मैं कहता हूं तुम से, यदि तुम परमात्मा की तलाश अपनी फैक्टरियों में करते रहे, तो तुम उसे कभी न पाओगे। यदि तुम परमात्मा की तलाश अस्पतालों में और स्कूलों में करते रहे, तो तुम उसे चूक जाओगे सदा-सदा के लिए, क्योंकि परमात्मा कोई उपयोगिता नहीं है। भारत में तो इस संसार को भी हम उसकी सृष्टि नहीं कहते हैं - हम इसे उसकी लीला कहते हैं। लीला प्रयोजनरहित होती है; वह खेल भी नहीं है। वह अपने साथ ही आख-मिचौनी की लीला करता रहता है कोई प्रयोजन नहीं है होना ही एकमात्र आनंद है। उसका अपने आप में मूल्य है मूल्य प्रयोजन में है। - नहीं है; मूल्य तुम तुम ठीक कहते हो. मैं अपने साथ हमेशा नैपकिन क्यों लिए रहता हूं? बिलकुल प्रयोजनरहित बात है। मैं भी नहीं जानता कि क्यों, लेकिन मैं उसे साथ रखता हूं। वह एक प्रतीक है—अतर्क्य का। सातवां प्रश्न
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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