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________________ क्षण उसी से आएगा; तुम अगले क्षण को शुरू करोगे उसी स्थल से, उसी अवस्था से, उसी स्थिति से और उसी धरातल से-जहां कि इस क्षण ने तुम्हें छोड़ा है। यही ढंग है विकसित होने का। यह क्षण एकमात्र क्षण है विकसित होने के लिए। क्या तुमने ध्यान दिया कि सारे संसार में-पौधे, पक्षी, जानवर, पहाड़-केवल इसी क्षण, वर्तमान क्षण का अस्तित्व है, और वे विकसित हो रहे हैं? केवल मनुष्य सोचता है भविष्य के बारे में और इसी कारण विकास रुक जाता है। जितना ज्यादा तुम सोचते हो भविष्य के बारे में, उतनी ही कम संभावना होती है विकसित होने की। विकास का अर्थ है : उस वास्तविकता के साथ संबंधित होना जो कि इस क्षण मौजूद है। और कोई दूसरी वास्तविकता नहीं है। 'बिना आशा के विकास कैसे संभव है?' विकास केवल बिना आशा के ही संभव है। मैं समझता हूं तुम्हारी मुश्किल। तुम कह रहे हो, 'यदि हम आशा न करें, तो हम विकास के विषय में भी आशा नहीं करेंगे। तो कैसे होगा विकास अगर हम आशा न करें और इच्छा न करें?' विकास के लिए तुम्हारी आशाओं, तुम्हारी इच्छाओं की जरूरत नहीं है। विकास के लिए तुम्हारी समझ की जरूरत है; विकास के लिए तुम्हारी सजगता की जरूरत है। सजगता काफी है। जो कुछ घटित हो रहा है, यदि तुम उसके प्रति सजग हो इस क्षण में, तो वह सजगता सूरज की रोशनी बन जाती है, और तुम्हारी अंतस सत्ता का वृक्ष विकसित होने लगता है। वह सजगता बन जाती है बरसा का पानी, और तुम्हारी अंतस सत्ता का वृक्ष बढ़ने लगता है। वह सजगता बन जाती है खाद पोषण। विकास के लिए केवल सजगता की जरूरत है। व्यक्ति विकसित होता है सजगता से-आशाओं से नहीं। चौथा प्रश्न : आपने कहा कि आप लोगों पर 'काम' नहीं करते तो फिर शिष्य बनाने का क्या अर्थ है? सदगुरु एक कैटेलिटिक एजेंट है; वह कुछ करता नहीं, फिर भी उसके द्वारा बहुत कुछ होता है। वह कर्ता नहीं होता बल्कि एक मौजूदगी होता है जिसके आस-पास चीजें घटित होती हैं। क्या तुम सोचते हो कि सूर्य उगता है और काम करने लगता है लाखों-लाखों वृक्षों पर? प्रत्येक फूल के पास आता है और उसे खिलने के लिए फुसलाता है? प्रत्येक कली के पास आता है और उसे खोलता है?
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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