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________________ व्यक्तिगत आकांक्षाएं मत निर्मित करो। अन्यथा तुम सदा दुखी रहोगे, सदा हताश रहोगे। तुम्हारी आशाएं कभी पूरी नहीं होंगी, क्योंकि अस्तित्व अपने ढंग से चलता है। अस्तित्व की अपनी धारा है अस्तित्व का अपना गंतव्य है। नदी जा रही है सागर की तरफ : और नदी की हर बूंद कहीं और ही जाने की सोचे, तो कैसे संभव है यह बात? नदी तो सागर की ओर ही बहेगी। वे बूंदें निराश होंगी क्योंकि वे उस मंजिल तक नहीं पहुंचेंगी जिसका वे सपना देख रही थीं। बुद्धिमान व्यक्ति उस बूंद की तरह है जो व्यक्तिगत सपना नहीं देखती। सबुद्ध व्यक्ति वह व्यक्ति है जो समग्र के साथ, नदी के साथ बहता है। वह कहता है, 'जहां तुम जा रही हो, मैं भी वहीं जा रहा हं। और मैं क्यों फिक्र करूं? नदी बह रही है, तो कहीं न कहीं जा ही रही होगी। यह मेरी चिंता का विषय नहीं है।' बूंद गिरा देती है अपनी चिंता. यही है निराशा की घड़ी, निराकाक्षा की घड़ी। उस घड़ी में बूंद नदी हो जाती है। उस क्षण में, अगर गहरे देखें तो, बूंद सागर हो गई होती है। उस क्षण में बूंद समग्र अस्तित्व हो गई होती है। 'क्या निराश होने में आपके प्रति निराश होना भी सम्मिलित है?' ही। यदि तुम आशा करने लगते हो, यदि तुम मेरे आस-पास आशाएं बना लेते हो, तो तुम अपने सपने निर्मित कर रहे हो। मेरा उनमें कोई सहयोग नहीं है। यह बात ध्यान में रख लेना : मेरा उनमें कोई सहयोग नहीं है, कोई हिस्सा नहीं है। तुम सपने और आकांक्षाएं निर्मित कर रहे हो, वह तुम्हारे निर्णय की बात है। यदि तुम निर्मित करते हो, तो तुम हताश होओगे। अगर तुम निर्मित नहीं करते, तो तुम मेरे साथ बहने लगते हो। यही अर्थ है समर्पण का, यही अर्थ है शिष्य होने का सदगुरु के साथ बहना। यदि मैं कहता हूं 'आशाएं गिरा दो', तो तुम गिरा देते हो। तुम बहते हो मेरे साथ। यदि तुम्हारी व्यक्तिगत आशाएं हैं, तो ध्यान रहे-जब तुम हताश होओ तो मुझे जिम्मेवार मत ठहराना। मैं जिम्मेवार नहीं हूं। वरना यह बात बड़ी आसान लगती है। तुम उस संसार से आते हो जहां तुम्हें हताशा मिली, तब तुम मेरे आस-पास आशा बनाने लगते हो, इच्छाएं, सपने निर्मित कर लेते हो मेरे आस-पास। मैं बहान बन जाता हूं तुम्हारे लिए फिर से आशा करने का। तुम फिर आकांक्षा करने लगते हो उन्हीं बातो की-अब मेरा सहारा मिल जाता है। नहीं, इन सब बातो में मैं कोई मदद नहीं करता। मैं केवल तभी मदद करता हूं यदि तुम आकांक्षाशून्य होना चाहते हो, यदि तुम आशा मात्र को गिरा देना चाहते हो, यदि तुम स्वयं को, अहंकार को छोड़ देना चाहते हो। केवल उसी ढंग से मदद कर सकता हूं मैं। मैं यहां किसी की इच्छाओं और आशाओं को पूरा करने के लिए नहीं हूं। इससे पहले कि हताशा पकड़े, उन्हें गिरा दो; वरना तुम नाहक मुझ पर नाराज होओगे। इस विषय में सचेत रहो; वरना तुम्हें लगेगा कि मैंने तुम्हारा समय बेकार
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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