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________________ साधारण जीवन में भी यदि तुम ध्यान दो तो तुम पाओगे कि जब भी तुम आनंद अनुभव करते हो, तो तुम शरीर को भूल जाते हो। जब भी कोई आनंदित होता है, वह अपने शरीर को भूल जाता है, और जब भी कोई दुखी होता है तो वह अपने शरीर को नहीं भूल सकता। असल में आयुर्वेद में स्वास्थ्य की परिभाषा सबसे अर्थपूर्ण है, सबसे महत्वपूर्ण है; संसार के किसी भी अन्य चिकित्सा-वितान ने ऐसी परिभाषा नहीं की है। असल में पश्चिमी चिकित्सा विज्ञान के पास स्वास्थ्य की कोई परिभाषा ही नहीं है। ज्यादा से ज्यादा वे कह सकते हैं. 'जब कोई रोग नहीं होता, तब तुम स्वस्थ होते हो। लेकिन यह कोई परिभाषा न हुई स्वास्थ्य की। कैसी है यह परिभाषा, जब स्वास्थ्य की परिभाषा करने के लिए तुम्हें रोग को बीच में लाना पड़ता है? तुम कहते हो, 'जब कोई रोग नहीं होता, तब तुम स्वस्थ होते हो।' यह एक नकारात्मक परिभाषा हुई, विधायक नहीं। आयुर्वेद कहता है कि जब तुम देह को भूल जाते हो, तब तुम स्वस्थ होते हो। यह बड़ी सुंदर बात है। विदेह : जब तुम अनुभव नहीं करते शरीर को-तुम शरीर को बिलकुल भूल जाते हो। तुम इसे देख सकते हो सिर केवल तभी अनुभव होता है, जब सिर में दर्द होता है। वरना तो कौन परवाह करता है सिर की? तुम कभी सजग नहीं होते सिर के प्रति। सिरदर्द से सिर का पता चलता है, अन्यथा तो तुम बिना सिर के होते हो। और अगर तुम निरंतर स्मरण रखते हो अपने सिर का, तो जरूर कुछ गड़बड़ है। जब श्वास ठीक चलती है तब तुम बिलकुल सजग नहीं होते उसके प्रति। लेकिन जब कुछ गड़बड़ हो जाती है-दमा, ब्रॉन्काइटिस-कुछ गड़बड़ हो जाती है, तब तुम सजग होते हो। सांस लेने में तकलीफ होती है, आवाज होती है और तुम उसे भूल नहीं सकते। जब तुम्हारी टांगें दुखती हैं, तब तुम जानते हो कि वे हैं। जब कहीं कोई तकलीफ होती है, केवल तभी तुम सचेत होते हो। अगर हर चीज ठीक से काम कर रही होती है, तो तुम शरीर को भूल जाते हो। यह स्वास्थ्य की परिभाषा है. जब तुम शरीर को पूरी तरह भूल जाते हो, तब तुम स्वस्थ हो। और कौन शरीर को पूरी तरह भूल सकता है? केवल योगी ही। हमारे पास तीन शब्द हैं : रोगी, भोगी, योगी। रोगी : वह जो बीमार है। भोगी. वह जो शरीर से आविष्ट है। और योगी : वह जो शरीर के पार जा चुका है। भोगी कभी-कभार योग के कुछ क्षणों को उपलब्ध होगा, जिन क्षणों में वह शरीर को भूल जाएगा। उसके जीवन का निन्यानबे प्रतिशत संबंधित होगा 'रोगी' के संसार से; जीवन का केवल एक प्रतिशत, बहुत दुर्लभ घड़ियां, जब वह योगी हो जाएगा। कई बार हर चीज ठीक काम कर रही होती है, ठीक से एक लयबद्धता में चल रही होती है-बिलकुल ऐसे ही जैसे कि कोई सुंदर, बिलकुल ठीक काम कर रही कार आवाज करती है, गुनगुनाती है, उसी तरह तुम्हारी सारी बाहरी- भीतरी संरचना ठीक समस्वरता से गुनगुना रही होती है सुदरतापूर्वक-तो कभी-कभार ऐसा होता है भोगी को। रोगी को कभी नहीं होता, योगी को सदा ही होता है। रोगी रुग्ण व्यक्ति है; भोगी ग्रसित है और जा रहा है रोगी की तरफ, देर- अबेर बीमार होगा और मरेगा,
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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