SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बच्चा गर्भ में एक सुनिश्चित तापमान के द्रव में तैरता है। उस द्रव में सागर के पानी के सारे लवण होते हैं। उसी कारण वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मनुष्य का विकास मछलियों से हुआ होगाक्योंकि अभी भी गर्भ में वही सागर का वातावरण बनाए रखना पड़ता है। सारी सुखद चीजें गहरे में गर्भ जैसी ही होती हैं। और जब भी तुम लेटे होते हो स्त्री के साथ, आलिंगनबद्ध, तब तुम्हें अच्छा लगता है। प्रत्येक पुरुष, चाहे वह कितनी ही उम्र का हो, फिर से बच्चा बन जाता है और प्रत्येक स्त्री, चाहे कितनी ही छोटी हो, फिर मां बन जाती है। जब भी वे प्रेम में पड़ते हैं, तो स्त्री मां की भूमिका करने लगती है और पुरुष बच्चे जैसा व्यवहार करने लगता है। एक युवा स्त्री भी मां बन जाती है और एक वृद्ध पुरुष भी बच्चा बन जाता है। योगी में यह आकांक्षा तिरोहित हो जाती है। और इस आकांक्षा के जाते ही, वह वस्तुत: फिर से जन्म लेता है। हमने भारत में उसे कहा है-दविज। यह दूसरा जन्म है, असली जन्म। अब उसे किसी दूसरे की जरूरत न रही; वह एक अलौकिक प्रकाश हो गया है। अब वह उठ सकता है धरती से ऊपर; अब वह उड़ सकता है आकाश में। अब वह धरती से बंधा हुआ नहीं होता। वह बन गया होता है फूलअसल में फूल भी नहीं, क्योंकि फूल भी धरती से जुड़ा होता है-वह बन गया होता है फूल की सुवास। पूर्णरूपेण मुक्त। वह आकाश में उड़ता है-धरती में उसकी जड़ें नहीं होती। दूसरों के शरीरों के संपर्क में आने की उसकी इच्छा तिरोहित हो जाती है। मानसिक शुद्धता से उदित होती है- प्रफुल्लता एकाग्रता की शक्ति इंद्रियों पर नियंत्रण और आत्म-दर्शन की योग्यता। ऐसा व्यक्ति बहुत आनंदित होता है-ऐसा व्यक्ति जिसे अब कोई जरूरत नहीं दूसरों के संपर्क में आने की-इतना आनंदित होता है अपनी मुक्ति में, इतना प्रफुल्ल होता है, इतना उत्सवमय होता है, उसका प्रत्येक क्षण एक प्रगाढ़ उल्लास का क्षण होता है। जितने अधिक तुम बंधे होते हो शरीर में, उतने ज्यादा उदास होओगे तुम, क्योंकि शरीर स्थूल है। शरीर पदार्थ है, बोझिल है। जितने ज्यादा तुम पार चले जाते हो शरीर के, उतने ज्यादा तुम हलके हो जाते हो। जीसस ने अपने शिष्यों को कहा है, 'आओ मेरे पीछे। मेरा बोझ हलका है। वे सब जो भारी बोझ तले दबे हैं, आएं, मेरे पीछे आएं। मेरा भार हलका है; निर्भार हं मैं।' 'मानसिक शुद्धता से उदित होती है-प्रफुल्लता.....।' यदि तुम उदास हो, यदि तुम सदा विषादग्रस्त हो, यदि तुम सदा दुखी हो, तो सीधे-सीधे तुम्हारे दुख के लिए कुछ नहीं किया जा सकता है। और जो कुछ भी किया जाएगा, वह व्यर्थ सिद्ध होगा। पूरब ने
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy