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________________ अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए; इसीलिए वह गरीब होता है। किसी ने उसे गरीब बनाया नहीं है। वह गरीब है, क्योंकि वह आकर्षित नहीं करता; उसके पास चुंबकीय आकर्षण नहीं है। ये सीधे-साफ आर्थिक नियम हैं कि यदि तुम्हारी जेब में कुछ रुपए हों, तो वे रुपए दूसरे रुपयों को तुम्हारी जेब में खींच लेंगे। यदि तुम्हारी जेब खाली है तो जेब भी खो जाएगी, क्योंकि कोई दूसरी जेब जिसमें काफी ज्यादा है, तुम्हारी जेब को आकर्षित कर लेगी। तुम जेब भी खो दोगे। जितने ज्यादा तुम समृद्ध होते हो उतने ही और ज्यादा समृद्ध तुम बनते जाते हो। तो मूल आवश्यकता तुम्हारे भीतर कुछ होने की है। तामसिक व्यक्ति के पास कुछ नहीं होता। वह तो बस एक मिट्टी का लोंदा होता है। वह निष्किय जीवन जीता है। राजसिक आदमी मिट्टी का लोंदा नहीं होता; वह एक सक्रिय ऊर्जा होता है। तेज सक्रिय ऊर्जा के साथ बहुत संभावना होती है। असल में ऊर्जा के सक्रिय हुए बिना किसी चीज की संभावना नहीं होती। लेकिन फिर उसकी ऊर्जा पागलपन बन जाती है-वह अति पर चली जाती है। बहुत ज्यादा सक्रिय होने के कारण वह बहुत कुछ खो देता है। बहुत ज्यादा सक्रिय होने के कारण वह नहीं जानता कि क्या करे और क्या न करे। वह कुछ न कुछ करता ही रहता है। वह उलटी बातें किए चला जाता है : एक हाथ से वह कुछ करेगा, दूसरे हाथ से उसे अनकिया कर देगा। वह करीब-करीब पागल होता है। सदा स्मरण रहे कि पहले प्रकार का व्यक्ति, तामसिक व्यक्ति, कभी पागल नहीं होता। इसीलिए पूरब में पागलपन ज्यादा नहीं फैला है। तुम्हें बहुत ज्यादा मनोविश्लेषण की आवश्यकता है, तुम्हें बहुत ज्यादा पागलखानों की आवश्यकता नहीं है। नहीं, पूरब में लोग मिट्टी के लोंदों की भांति हैं, कैसे तुम पागल हो सकते हो? तामसिक में पागलपन की संभावना ही नहीं होती। तुम कुछ करते ही नहीं कि पागल होओ। पश्चिम में पागलपन करीब-करीब सामान्य बात हो गई है। अब केवल मात्रा का ही अंतर है सामान्य और असामान्य लोगों के बीच। जो पागलखाने के भीतर हैं और जो पागलखाने के बाहर हैं, वे सभी एक ही नाव में सवार हैं-सिर्फ मात्रा का अंतर है। और हर कोई सीमा पर खड़ा है. जरा सा धक्का, और तुम भीतर हो जाओगे। कोई भी चीज गलत हो सकती है और हजारों बातें हैं तुम्हारे जीवन में। कोई भी चीज गलत हो सकती है, और तुम भीतर हो जाओगे। पश्चिम राजसिक है-बहुत ज्यादा गति है। गति ही लक्ष्य है. चलते रहो, कुछ न कुछ करते रहो। और अब तक कोई ऐसा समाज नहीं बना जो सात्विक व्यक्तियों का हो, अब तक ऐसा संभव नहीं हुआ। भारत का दावा है, पूरब का दावा है कि वे सात्विक लोग हैं। वे सात्विक नहीं हैं; वे तामसिक हैं। बहुत कम, कभी-कभार कोई बुद्ध होते हैं या कोई कृष्ण होते हैं-उससे कुछ सिद्ध नहीं होता। वे अपवाद हैं; वे सिर्फ नियम को सिद्ध करते हैं। पूरब तामसिक है-बहुत धीमी गति है, बिलकुल जड़, गतिहीन।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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